सोमवार, 14 नवंबर 2011

आयी भोर .......

भोर सुबह में
पेड़-पौधे जागे,
पंछियों के मीठे 
गीत जागे !

खिली कलियाँ 
फूल महके,
कलि-कुसुमों पर 
भौरे इतराये !

लिये नये स्वप्न
नई आशा
आलस त्यागकर 
जागी उषा !

अब तो जागो मन 
श्वेत परिधान पहन कर 
स्वागत करने
बड़े सवेरे 
आयी भोर ......!!

20 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

बहुत ही अच्छा लिखा है .

Rajesh Kumari ने कहा…

bahut sudar likha hai.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

अब तो जागो मन
श्वेत परिधान पहन कर
स्वागत करने
बड़े सवेरे
आयी भोर ......!!sakaratmak bhaw jagati rachna

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सुंदर पंक्तियाँ......

मनोज कुमार ने कहा…

कविता के भाव पसंद आए।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सुहानी भोर ... अच्छी प्रस्तुति

सागर ने कहा…

bhaavpurn sundar kavita....

सदा ने कहा…

वाह ...बहुत बढि़या ।

कल 16/11/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है।

धन्यवाद!

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

प्रातःकाल का सुंदर वर्णन ॥

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

वाह सुन्दर भोर सी रचना...
सादर....

Bharat Bhushan ने कहा…

मन की भोर बहुत ही उजली होती है. सुंदर रचना.

Rakesh Kumar ने कहा…

सदा जी की हलचल से चले आये आपके ब्लॉग की ओर
मन खिल गया है जब ये पढा कि 'बड़े सवेरे आयी भोर'

बहुत बहुत आभार सुमन जी.

समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर भी आईयेगा.

mridula pradhan ने कहा…

saral aur sunder......

Anupama Tripathi ने कहा…

अब तो जागो मन
श्वेत परिधान पहन कर
स्वागत करने
बड़े सवेरे
आयी भोर ......!!
sunder bhav..

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

bahut hi acchi rachana hai...

कुमार राधारमण ने कहा…

सिवाय मनुष्य के,समस्त प्राणी सूर्योदय के आसपास ही अपनी दिनचर्या प्रारम्भ करते हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि केवल मनुष्य का जीवन प्रकृति से अधिकतम दूर है।

Maheshwari kaneri ने कहा…

बहुत सुन्दर भाव...

Kunwar Kusumesh ने कहा…

अच्छा लिखा है .

Sunil Kumar ने कहा…

वाह सुन्दर रचना...

केवल राम ने कहा…

वाह यह भोर ...!