हमने जीवन को
कब समझा कब जाना
यूह्नी जीवन को वेर्थ गवांया
किंतु जीते -जीते
एक दिन पता चला
जिसको हमने जीवन समझा
वह जीवन नही
मृत्यु के द्वार पर
खड़ी हुई मनुष्य की
लम्बी कतारे है
कोई अब गया कोई
कल कोई परसों जाएगा
देर सवेर की बात है
खोजने पर भी उनके
नही मिलेंगे निशान
जैसे पानी पर खींची
गई हो लकीरे
बन भी नही पाती
की मिट जाती है
ऐसे ही पल में सब कुछ
मिटा देती है मृत्यु
एक कविता को छोड़कर!