Main aur Meri Kavitayen
रविवार, 24 अगस्त 2014
कविता तुम ...
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कहाँ रहती हो कविता तुम कभी तनहाई में बुलाने पर भी नहीं आती, कभी बिन बुलाये आ जाती हो भावों के नुपुर पहन कर, छमा-छ...
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रविवार, 27 जुलाई 2014
टमाटर में वही ....
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बैंगन में वही टमाटर में वही सृष्टि के कण-कण में वही कहते साधु संत महान सहन नहीं कर पाते लेकिन आदमी में भगवान … !
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शुक्रवार, 11 जुलाई 2014
लोग कहाँ पचा पाते है …
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अभिव्यक्ति की आजादी हर किसी को है लेकिन चंद संबुद्ध रहस्यदर्शी ही सही मायने में उसका उपयोग कर पाते है जस का तस नग्न सत्य ...
9 टिप्पणियां:
सोमवार, 28 अप्रैल 2014
अटपटी चटपटी बातें …
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कुर्सी एक, उसके पीछे भीड़ असंख्य है ऐसे लग रहा है जैसे देश की उन्नति प्रजा का सुख कुर्सी और पावर में ही निहित है चटपटी...
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मंगलवार, 8 अप्रैल 2014
सत्ता की भूख …
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कोई, भैंसों का चारा खाये कोई नग्न हो भैंसों को खिला रहा है … बड़ी अजीब है ये सत्ता की भूख भी कोई खा ...
9 टिप्पणियां:
रविवार, 9 मार्च 2014
मित्र कौन है ?
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मित्र , रंगबिरंगी चित्र विचित्र पुस्तके न हम उनकी अपेक्षाओं पर खरे उतरते है न वो हमारी तो फिर मित्र कौन है ...
10 टिप्पणियां:
गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014
काफी है जीने के लिए ...
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मान लो , मन नदी मानसरोवर उपर वासनाओं की लहरे निचे शीतल जल लगातार इन लहरों का चल रहा अर्थहीन -सा क्रम प्रवंचना के हवाई थप...
14 टिप्पणियां:
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