वाह सुमन जी,आपकी छोटी छोटी कवितायें बड़ी गहरी संवेदना छपाए हुई हैं !मन मरू मेंकभीबोये न होंगेबीजप्रेम केतभी तोआजउग आये हैकैक्टस !हर कविता जीवन के बिखरते मूल्यों की तड़प की संवाहिका है !साभार,-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
एक नहीं तीनों रचनाएँ,बहुत सुंदर बधाई तो कम है
आपकी तीनो कवितायेँ लाजवाब हैं..."मन मरू मेंकभीबोये न होंगेबीजप्रेम केतभी तोआजउग आये हैकैक्टस!"लेकिन कैक्टस उगने के बाद उसी पर फूल भी चाहता है इंसान.. "एक दिन बूंदसागरसेबिछड़ करखूब रोईपछताईफिर सेगिरीबूंदसागर मेंसागर हो गई!"अस्तित्व कि इससे सुंदर पहचान और क्या होगी!!!!"आधुनिक सभ्यताजैसे कीगुलदान मेंसजेरंगबिरंगीकागज केफूलना खुशबुन महक !"लेकिन आधुनिकता के पीछे दौड़ाने वाले हम अपनी ज़िन्दगी में चाहते पुराने मूल्य ही हैं.... सीधे सुंदर शब्दों में सच्ची अभिव्यक्ति....धन्यवाद!!!!
bahut sunder..ek-do shabd me pura jhinjhod kar rakh diya aapne..thanks
बेहतरीन! बहुत ही सुन्दर भाव और रचनाएँ!
जैसे किगुलदान मेंसजेरंगबिरंगीकागज केफूलना खुशबुन महक !सच है आज के रिश्तों में महक कहाँ ....सुमन जी आपकी क्षणिकायें लिए जा रही हूँ .....
gyanchand ji,sunil ji,punam ji,umashankar ji,nilesh ji,harkirat ji ap sabhi ka aabhar....
आदरणीया सुमन जी सादर सस्नेहाभिवादन ! आपकी रचनाधर्मिता को प्रणाम है । तीनों रचनाएं एक से बढ़कर एक हैं … आप सहजता से सुंदर सार्थक कविता सौम्य शिष्ट संस्कारित शब्दों के साथ संक्षेप में कह देती हैं ! >~*~ हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !~*~ शुभकामनाओं सहित- राजेन्द्र स्वर्णकार
आदरणीया सुमन जी नमस्कार !छोटी छोटी कवितायें बड़ी गहरी हैं
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
आप की रचनाएँ.... गागर में सागर समान है .... बहुत बहुत बधाई ..
बूँद की व्याकुलता का अच्छा चित्रण...हर एक बूँद सागर की उम्र बढाती है चाहे वो एक सेकेण्ड के छोटा हिस्सा ही क्यों ना हो.....
बेहतरीन| बहुत ही सुन्दर भाव और रचनाएँ|
वाह सुमन जी,
जवाब देंहटाएंआपकी छोटी छोटी कवितायें बड़ी गहरी संवेदना छपाए हुई हैं !
मन मरू में
कभी
बोये न होंगे
बीज
प्रेम के
तभी तो
आज
उग आये है
कैक्टस !
हर कविता जीवन के बिखरते मूल्यों की तड़प की संवाहिका है !
साभार,
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
एक नहीं तीनों रचनाएँ,बहुत सुंदर बधाई तो कम है
जवाब देंहटाएंआपकी तीनो कवितायेँ लाजवाब हैं...
जवाब देंहटाएं"मन मरू में
कभी
बोये न होंगे
बीज
प्रेम के
तभी तो
आज
उग आये है
कैक्टस!"
लेकिन कैक्टस उगने के बाद उसी पर फूल भी चाहता है इंसान..
"एक दिन
बूंद
सागरसे
बिछड़ कर
खूब रोई
पछताई
फिर से
गिरी
बूंद
सागर में
सागर हो गई!"
अस्तित्व कि इससे सुंदर पहचान और क्या होगी!!!!
"आधुनिक सभ्यता
जैसे की
गुलदान में
सजे
रंगबिरंगी
कागज के
फूल
ना खुशबु
न महक !"
लेकिन आधुनिकता के पीछे दौड़ाने वाले हम अपनी ज़िन्दगी में चाहते पुराने मूल्य ही हैं....
सीधे सुंदर शब्दों में सच्ची अभिव्यक्ति....धन्यवाद!!!!
bahut sunder..ek-do shabd me pura jhinjhod kar rakh diya aapne..thanks
जवाब देंहटाएंbahut sunder..ek-do shabd me pura jhinjhod kar rakh diya aapne..thanks
जवाब देंहटाएंबेहतरीन! बहुत ही सुन्दर भाव और रचनाएँ!
जवाब देंहटाएंजैसे कि
जवाब देंहटाएंगुलदान में
सजे
रंगबिरंगी
कागज के
फूल
ना खुशबु
न महक !
सच है आज के रिश्तों में महक कहाँ ....
सुमन जी आपकी क्षणिकायें लिए जा रही हूँ .....
gyanchand ji,
जवाब देंहटाएंsunil ji,
punam ji,
umashankar ji,
nilesh ji,
harkirat ji ap sabhi ka aabhar....
आदरणीया सुमन जी
जवाब देंहटाएंसादर सस्नेहाभिवादन !
आपकी रचनाधर्मिता को प्रणाम है । तीनों रचनाएं एक से बढ़कर एक हैं …
आप सहजता से सुंदर सार्थक कविता सौम्य शिष्ट संस्कारित शब्दों के साथ संक्षेप में कह देती हैं !
>~*~ हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !~*~
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
आदरणीया सुमन जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
छोटी छोटी कवितायें बड़ी गहरी हैं
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
जवाब देंहटाएंआप की रचनाएँ.... गागर में सागर समान है .... बहुत बहुत बधाई ..
जवाब देंहटाएंबूँद की व्याकुलता का अच्छा चित्रण...
जवाब देंहटाएंहर एक बूँद सागर की उम्र बढाती है चाहे वो एक सेकेण्ड के छोटा हिस्सा ही क्यों ना हो.....
बेहतरीन| बहुत ही सुन्दर भाव और रचनाएँ|
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