मंगलवार, 3 मई 2011

जब तुमसे प्रेम हुआ है .......


तुमको अपना हाल सुनाने 
लिख रही हूँ पाती 
 प्रिय प्राण मेरे 
यकीन मानो 
अपना ऐसा हाल हुआ है 
जबसे मुझको प्रेम हुआ है !
जग का अपना दस्तूर पुराना 
चरित्रहिन् कहकर देता ताना 
बिठाया चाहत पर 
पहरे पर पहरा 
नवल है प्रीत प्रणय की 
कैसे छुपाऊं
ह्रदय खोलकर अपना 
कहो किसको बताऊँ 
अपना भी जैसे 
लगता पराया है 
जबसे मुझको प्रेम हुआ है !
कौन समझाये इन नयनों को 
बात तुम्हारी करते है 
पलकों पर निशि दिन 
स्वप्न तुम्हारे सजाते है 
जानती हूँ स्वप्नातीत 
है रूप तुम्हारा 
मन,प्राण मेरा 
उस रूप पर मरता है 
जब से मुझको प्रेम हुआ है !
तुम्हारी याद में,
तुम तक पहुँचाने को 
नित नया गीत लिखती हूँ 
भावों की पाटी पर प्रियतम 
चित्र तुम्हारा रंगती हूँ 
किन्तु छंद न सधता 
अक्षर- अक्षर बिखरा 
थकी तुलिका बनी 
आड़ी तिरछी रेखाएँ
अक्स तुम्हारा नहीं ढला है 
जब से मुझको प्रेम हुआ है !

 

5 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेम की पराकाष्ठा है ... प्रेम के रंग में डूबी रचना ...

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  2. ‘नवल है प्रीत प्रणय की
    कैसे छुपाऊं
    ह्रदय खोलकर अपना
    कहो किसको बताऊँ ’

    सुंदर पंक्तिया :)

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  3. तुम्हारी याद में,
    तुम तक पहुँचाने को
    नित नया गीत लिखती हूँ
    भावों की पाटी पर प्रियतम
    चित्र तुम्हारा रंगती हूँ

    प्रेम बिना जग सूना रे बंधू.....

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  4. प्रेम पगे मन के भाव..... बहुत सुंदर

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  5. बहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...

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