जैसे-तैसे
बाहर का अंधकार
तो मिटा देते है
किन्तु,
बाहर की इस
रोशनी से मेरे
भीतर का अंधकार
कहाँ मिट पाता है
इसलिए मुझे
हे प्रभु,.......
अंधकार से
प्रकाश की ओर
ले चलो !
एक अदद
उधडी-सी जिंदगी
सीते-सीते
भले ही दिन का
अंत आया पर
मुश्किलों का
अंत कब आया !
उबड़-खाबड़
जीवन की इन
पथरीली राहों पर
कब तक है चलना
थके कदम कहते है
रुक जाना
समय कहता है
चलते रहना
भले ही सांसो का
अंत आया पर
सफ़र का अंत
कब आया !