शनिवार, 22 सितंबर 2007

सुमित के बारे में

एक दिन सुमित जो कि मेरा प्यारा सा बेटा है मुझसे पूछने लगा कि मम्मी मुझमे
ऐसा क्या है जो तुम्हें अच्छा लगता है ! मैंने कहा तुम्हारी आंखें, तुम्हारी आंखे मुझे बहुत सुन्दर लगती है
इन आंखों में सुबह से शाम तक न जाने कितने सारे भाव आते जाते रहते है ! और इन भावों को मैंने कविता में कुछ इस तरह उसे समझाया था ....!


देख तुम्हारी 
भोली आंखें
कहता है मन 
उसपर कोई 
कविता लिखू
आंखें तेरी 
इतनी प्यारी
लगता है कोई 
नीली-सी 
झील हो 
गहरी
हलके से उठती
गिरती पलके
शोख शरारत
तेरी आंखें
कभी सपनों में  
खोये खोये से  
लगते साँझ 
के जैसे 
उदास साये
चंचल चितवन 
तेरी आंखें
सबके मन को 
मोह लेती आंखे
मीत तुम्हारी ये 
अनमोल आंखे
सम्हाल कर 
रखना इन्हें,
इन आँखों से 
कभी बूंद ढले
गंगा जल हो 
निर्मल आंखे
काश कभी 
ऐसा भी हो
तेरी आंखें देखूं 
और सुबह हो
तेरी आंखे देखते 
जीवन की 
शाम ढले !

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