सोमवार, 30 जून 2008

रिमझिम

रिमझिम आई बरखा
नभ में,
कड़अड़ कड़ कड़
बिजली चमकी
काले -काले बादल छाये रे
रिमझिम -रिमझिम
आई बरखा
ठंडी चली पुरवाई रे
बीत गए अब
दिन गर्मी के
नही रहे गर्म
लू के झोंके
ताप मिटा धरती का
जनजीवन में खुश हाली रे
कबसे आंगन में
रिमझिम बरसा बरस रही
कानो में रस घोल रही
झरझर- झरझर जैसे
लय ताल बद्ध संगीत रे
धीरे -धीरे हौले -हौले
खोल पिसारा नाच
मुग्ध मनमयूर नाच
नाच छम छनना नाच रे?

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