शनिवार, 28 अगस्त 2010

शत-शत दीप जलने दो

छलक-छलक आते है ये आंसू
बिन बादल बरस जाते है ये आंसू!
इन बहते आंसुओं को मत रोको
इन्हें बहने दो!
इन आसूओं के खारेपन से
जीवन के अनंत दुःख धुल जाने दो !
खूब खिलते उद्यान महकाते
इन खिलती ह्रदय कलियों को
मत तोड़ो
इन्हें खिलने दो !
इन खिलते फूलों की खुशबु से
जीवन की फुलवारी
सदा महकने दो !
केवल शब्द नहीं है ये
भाव है मन के
इन भावों को सीमा में मत बांधो
इन्हें मुक्त आकाश में उड़ने दो !
इन भावों के मनमंदिर में
शत-शत दीप जलने दो !

6 टिप्‍पणियां:

  1. इन आसूओं के खारेपन से
    जीवन के अनंत दुःख धुल जाने दो !
    सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई

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  2. इन आसूओं के खारेपन से
    जीवन के अनंत दुःख धुल जाने दो !

    सशक्त अभिव्यक्ति ....

    मेरे ब्लॉग पर आने का आभार

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  3. केवल शब्द नहीं है ये
    भाव है मन के
    इन भावों को सीमा में मत बांधो
    इन्हें मुक्त आकाश में उड़ने दो !

    सुमन जी ,
    बहुत अच्छी रचना है आपकी ...
    मन के भावों की सुंदर अभिव्यक्यी .....!!

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  4. इन बहते आंसुओं को मत रोको
    इन्हें बहने दो!
    इन आसूओं के खारेपन से
    जीवन के अनंत दुःख धुल जाने दो !
    बहुत सुंदर ।
    आँसुओं से दुख धुल जाते हैं ये तो जीवन की सच्चाई है ।

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  5. छलक-छलक आते है ये आंसू
    बिन बादल बरस जाते है ये आंसू!
    इन बहते आंसुओं को मत रोको
    इन्हें बहने दो!
    .....अति सुंदर!

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