शनिवार, 27 नवंबर 2010

भाव सुमन

सुरमई हुआ विशाल अम्बर
तम को हरने आया भास्कर
सजी धजी धरती सुंदर
देती सबको प्रेम निरंतर
ओस बिखरी मोती बनकर
फूल खिले तरु-तरु पर
कोयल गाती गीत मनोहर
खग गण डोलती सुर-तालपर
मंद बहती नदियाँ ,निर्झर
समीर भागे गिरिशिखरोंपर
रुके न यहाँ वहाँ पलभर
पथिक खड़ा हो कोई तटपर
तृषा हरने नील सरोवर
बहर के आया है गुलमोहर
मन्त्रमुग्धता छाई मनपर
जब मन में हो श्रद्दा प्रभुपर
कण-कण में होते उसके दर्शन
तब प्रभु चरणों में झर जाते है
यह भाव सुमन !

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (29/11/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

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  2. सुंद,र सुमन जी सुबह का इतना सुंदर वर्णन प्रक़ति पग पग पर हमें ईश्वर के दर्शन कराती है बस हमें ्नुभव करना आना चाहिये ।

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  3. बढ़िया शब्द चयन के साथ बहुत अच्छी लगी यह रचना !
    शुभकामनायें

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  4. सुमन के समधुर भाव-सुमन. सुन्दर रचना...

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  5. आदरणीया सुमन जी
    नमस्कार !
    सुरमई हुआ विशाल अम्बर
    तम को हरने आया भास्कर
    ...........ये लो जी आ गए संजय भास्कर
    सुन्दर रचना...
    पहली बार पढ़ रहा हूँ आपको और भविष्य में भी पढना चाहूँगा सो आपका फालोवर बन रहा हूँ ! शुभकामनायें

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  6. फूल खिले तरु-तरु पर
    कोयल गाती गीत मनोहर
    खग गण डोलती सुर-तालपर

    बसंत ऋतू का खूबसूरत वर्णन किया है सुमन जी .....

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