सोमवार, 13 दिसंबर 2010

आयी भोर ....

पेड़- पौधे जागे
पंछियों के मीठे
गीत जागे
खिली कलियाँ
फूल महके
कलि कुसुमों पर
भौरे इतराए!
नये स्वप्न नई आशा
आलस त्यागकर,
जागी उषा
अब तो जागो मन!
श्वेत परिधान पहनकर ,
स्वागत करने
बड़े सवेरे आयी भोर ....!!

12 टिप्‍पणियां:

  1. वाह वाह वाह कितनी भीनी भीनी मदमस्त कर देने वाली है रचना…………क्या खूब ख्वाब संजोया है…………शानदार दिल को छू गया।

    जवाब देंहटाएं
  2. आपने शब्दों को बहुत ख़ूबसूरती से पिरोया है ... शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  3. idhar bhor hui nahi ki udharse bhaskar ji ke darshan huye kaya baat hai ..dhanayavad .........

    जवाब देंहटाएं
  4. mridula ji apki kavitaye sari padhi hai sabhi mujhe sunder lagi par apne tippani ke liye jagah kyon nahi chhodi..........

    जवाब देंहटाएं
  5. अब तो जागो मन!
    श्वेत परिधान पहनकर ,
    स्वागत करने
    बड़े सवेरे आयी भोर ....!
    prateekatmak achhi rachna , badhai

    जवाब देंहटाएं
  6. सुमन जी,
    मन की कोमल भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति !
    साभार,
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

    जवाब देंहटाएं
  7. सुमन जी

    अच्छी कविता लिखती हैं आप ! बधाई !

    नये स्वप्न नई आशा
    जागी उषा
    अब तो जागो मन!

    श्वेत परिधान पहनकर ,
    स्वागत करने
    बड़े सवेरे आयी भोर … !


    बहुत सुंदर !

    शुभकामनाओं सहित
    राजेन्द्र स्वर्णकार

    जवाब देंहटाएं
  8. अब तो जागो मन!
    श्वेत परिधान पहनकर ,
    स्वागत करने
    बड़े सवेरे आयी भोर ....!!

    इस भोर के साथ नया वर्ष भी दस्तक दे रहा है .....शुभकामनाएं .....

    जवाब देंहटाएं