शुक्रवार, 3 जून 2011

हर फूल दुसरे से अलग है ! (बालकविता )

क्यों देते हो उपदेश
ऐसे बनो वैसे बनो
नक़ल करने पर,
देते हो सजा !
फिर क्यों कहते हो
बनो उसके जैसा !
पूछो माली से ....
उसके बाग़ के,
फूल न्यारे खुशबू न्यारी
क्या जूही क्या मोगरा
फिर भी उसको कितना प्यारा !
हम भी तुम्हारे बाग़ के फूल है !
हर फूल दुसरे से अलग है !
देना स्नेह का खाद-पानी, फिर
हम अपना फूल खिलायेंगे !
सारी दुनिया में हम अपनी
ख़ुशबू सारी बिखरायेंगे !

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर शिक्षाप्रद बालकविता , आभार

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  2. हम भी तुम्हारे बाग़ के फूल है !
    हर फूल दुसरे से अलग है !
    देना स्नेह का खाद-पानी, फिर
    हम अपना फूल खिलायेंगे !
    सारी दुनिया में हम अपनी
    ख़ुशबू सारी बिखरायेंगे !
    sunder bal kavita
    saader
    rachana

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  3. हम भी तुम्हारे बाग़ के फूल है !
    हर फूल दुसरे से अलग है !
    देना स्नेह का खाद-पानी, फिर
    हम अपना फूल खिलायेंगे !
    सारी दुनिया में हम अपनी
    ख़ुशबू सारी बिखरायेंगे !... bahut hi sahi nichod

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  4. बच्चों के लिये बहुत बढ़िया कविता रची है आपने.

    सादर

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  5. बहुत ही अच्‍छा लिखा है ।

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  6. हम भी ये ही मानते है कि ...हर फूल की अपनी अलग ही खुशबु होती है

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  7. हर कोई एक जैसा हो तो दुनिया बोर लगे- वो कहते हैं ना- Variety is the spice of life. सुंदर कविता ॥

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  8. देना स्नेह का खाद-पानी, फिर
    हम अपना फूल खिलायेंगे !
    सारी दुनिया में हम अपनी
    ख़ुशबू सारी बिखरायेंगे !


    क्या बात है !

    आदरणीय चन्द्र मौलेश्वर प्रसाद जी ने ठीक ही कहा है । :)

    बहुत मन से लिखा आपने । अच्छी बाल कविता है ।

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  9. हम बच्चों को उसके जैसा बनाना चाहते हैं क्योंकि वह पैसेवाला है या फिर अपने जैसा-बगैर यह सोचे कि खुद हम ही क्या हैं!

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