ये आज
सुबह-सुबह
किसकी
यादोंकी
ख़ुशबू
श्वास-श्वास में,
कस्तूरी घोल
गई !
शब्दों के
कलि-दल खुले
भाव कुछ
हुये है
सुरमई !
यादों की वह
नर्म धूप
सुनहरी
तन-मन छू
आँगन में,
पसर गई !
सुबह-सुबह
किसकी
यादोंकी
ख़ुशबू
श्वास-श्वास में,
कस्तूरी घोल
गई !
शब्दों के
कलि-दल खुले
भाव कुछ
हुये है
सुरमई !
यादों की वह
नर्म धूप
सुनहरी
तन-मन छू
आँगन में,
पसर गई !
बहुत कोमल भाव लिए सुन्दर रचना ..
जवाब देंहटाएंmemories are immortal !!
जवाब देंहटाएंlovely
आपका स्वागत है "नयी पुरानी हलचल" पर...यहाँ आपके ब्लॉग की कल होगी हलचल... नयी-पुरानी हलचल
जवाब देंहटाएंआपकी हर रचना की तरह यह रचना भी बेमिसाल है !
जवाब देंहटाएंकई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
जवाब देंहटाएंबहुत देर से पहुँच पाया ...
itni pyaari si yaad ... dekhte dekhte hamen bhi chhu gai
जवाब देंहटाएंनर्म धूप
जवाब देंहटाएंसुनहरी
तन-मन छु
आँगन में,
परस गई !
aangan me pasar gai sunder likha hai
rachana
सुंदर प्रयोग :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर पंक्तियाँ ....
जवाब देंहटाएंनर्म धूप
जवाब देंहटाएंसुनहरी
तन-मन छु
आँगन में,
परस गई !
बहुत सुंदर पंक्तियाँ ...
नर्म धूप
जवाब देंहटाएंसुनहरी
तन-मन छु
आँगन में,
परस गई !
बहुत सुंदर पंक्तियाँ ...
आपके भीतर जो सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित हो रही है,वह बहुत प्रेरणादायी है।
जवाब देंहटाएंLovely creation !
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com