बुधवार, 8 जून 2011

कैसी हो याद ?

ये आज
सुबह-सुबह
किसकी
यादोंकी
ख़ुशबू
श्वास-श्वास में,
कस्तूरी घोल
गई !
शब्दों के
कलि-दल खुले
भाव कुछ
हुये है
 सुरमई !
यादों की वह
नर्म धूप
सुनहरी
तन-मन छू
आँगन में,
पसर गई !

14 टिप्‍पणियां:

  1. आपका स्वागत है "नयी पुरानी हलचल" पर...यहाँ आपके ब्लॉग की कल होगी हलचल... नयी-पुरानी हलचल

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी हर रचना की तरह यह रचना भी बेमिसाल है !

    जवाब देंहटाएं
  3. कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
    बहुत देर से पहुँच पाया ...

    जवाब देंहटाएं
  4. नर्म धूप
    सुनहरी
    तन-मन छु
    आँगन में,
    परस गई !
    aangan me pasar gai sunder likha hai
    rachana

    जवाब देंहटाएं
  5. नर्म धूप
    सुनहरी
    तन-मन छु
    आँगन में,
    परस गई !
    बहुत सुंदर पंक्तियाँ ...

    जवाब देंहटाएं
  6. नर्म धूप
    सुनहरी
    तन-मन छु
    आँगन में,
    परस गई !
    बहुत सुंदर पंक्तियाँ ...

    जवाब देंहटाएं
  7. आपके भीतर जो सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित हो रही है,वह बहुत प्रेरणादायी है।

    जवाब देंहटाएं