रविवार, 18 सितंबर 2011

शब्द बेच रहीं हूँ आओं !

खट्टे-मीठे इन शब्दों में,
अर्थ मधुर भर लायी हूँ
परख-परख कर इनका
मूल्य लगाओ !
शब्द बेच रहीं हूँ आओ !

अन्तस्तल है सरिता-सागर
भरा भावना का इसमें जल
गीत,कविता है मुक्ता-दल
इसे लायी हूँ चुन-चुनकर
जाँच परख कर तोलो !

क्या पता कल आऊं न आऊं मै
लेना न  लेना तुमपर है निर्भर
रूपये पैसे की बात ही, छोड़ो
केवल स्नेह के बदले मोल लेलो
निज ह्रदय में सजाओ आओं !

भाव बेच रहीं हूँ   आओं !


28 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर भावों की संरचना।

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  2. बेहतरीन अभिव्यक्तियों की माला आपकी काव्य रचना अच्छा लगा पढ़कर बधाई

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  3. कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका

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  4. बहुत सुंदर ...प्रभावित करती पंक्तियाँ

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  5. अन्तस्तल है सरिता-सागर
    भरा भावना का इसमें जल
    गीत,कविता है मुक्ता-दल
    इसे लायी हूँ चुन-चुनकर

    sundar bhaav.

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  6. रोज़ नित नये शब्द बेचने के लिए चली आओ बहन सुमन॥

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  7. अन्तस्तल है सरिता-सागर
    भरा भावना का इसमें जल
    गीत,कविता है मुक्ता-दल
    इसे लायी हूँ चुन-चुनकर
    जाँच परख कर तोलो !

    बहुत खूबसूरत भाव ... अच्छी लगी यह रचना

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  8. कल 21/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  9. रूपये पैसे की बात ही, छोड़ो
    केवल स्नेह के बदले मोल लेलो
    निज ह्रदय में सजाओ आओं !

    vaah,kya baat hai.maza aa gaya padhkar.

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  10. बहुत खूब .. सच है स्नेह के बदले स्नेह मिल जाए तो बात ही क्या ...

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  11. बढ़िया शब्द/भाव संयोजन... खुबसूरत रचना...
    सादर...

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  12. भाव के भूखे तो भगवान भी बताए जाते हैं,हमारी तो बिसात ही क्या!

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  13. सच है। शब्द का मोल-तोल तो नहीं होना चाहिए, पर व्यापार/लेन-देन होते रहना चाहिए।

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  14. शब्दों का बेचना एक नया बिम्ब लिया है आपने बधाई

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  15. अन्तस्तल है सरिता-सागर
    भरा भावना का इसमें जल
    गीत,कविता है मुक्ता-दल
    इसे लायी हूँ चुन-चुनकर
    जाँच परख कर तोलो !

    भावपूर्ण रचना...

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  16. बहुत ख़ूब ! स्न्ह के मोल तो भगवान भी बिक जाते हैं … बहुत सुंदर रचना है ………


    आपको सपरिवार
    नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !

    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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