शनिवार, 8 अक्टूबर 2011

सफ़र का अंत कब आया !

एक अदद
उधडी-सी जिंदगी
सीते-सीते
भले ही दिन का
अंत आया पर
मुश्किलों का
अंत कब आया !
उबड़-खाबड़
जीवन की इन
पथरीली राहों पर
कब तक है चलना
थके कदम कहते है
रुक जाना
समय कहता है
चलते रहना
भले ही सांसो का
अंत आया पर
सफ़र का अंत
कब आया !


20 टिप्‍पणियां:

  1. चलने का नाम ही ज़िंदगी है ...

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  2. यह चक्र तब तक चलता रहेगा,जब तक इस बात का संतोष न हो कि जीवन को उसकी पूर्णता में जिया गया।

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  3. एक अदद
    उधडी-सी जिंदगी
    सीते-सीते
    भले ही दिन का
    अंत आया पर
    मुश्किलों का
    अंत कब आया !... सोचती रही , सीती रही

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  4. आपकी पोस्ट की हलचल आज (09/10/2011को) यहाँ भी है

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  5. मुश्किलों के सफ़र का अंत नहीं है.

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  6. जीवन दर्शन दाई इस रचना के लिए आभार .प्रेरक है यह रचना .कर्म की और लेजाती है हर पल को .

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  7. "ऊंचे नीचे राते और मंजिल तेरी दूर....

    सार्थक/प्रेरक रचना...
    सादर बधाई....

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  8. चलते रहना
    भले ही सांसो का
    अंत आया पर
    सफ़र का अंत
    कब आया !

    ....गहन जीवन दर्शन का सटीक चित्रण...सच है साँसों का अंत प्रारंभ है एक अगले सफर का...

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  9. बहुत सुन्दर रचना...और अच्छा ब्लॉग.बधाई.

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  10. सुंदर जीवन सार से भरी यह कविता
    यही देगी ऊर्जा चलते रहने की ।

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  11. साँसों के अंत पर ही सफर खत्म होता है ... अच्छी प्रस्तुति

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