बुधवार, 30 नवंबर 2011

प्रिय तुम छिपो चाहे जहाँ ........


प्रिय तुम छिपो चाहे जहाँ 
जिस रूप में भी, सहज 
मै तुम्हे पहचान लुंगी 
हम दोनों में भेद कहाँ ?
तुम सत्य शिव सुंदर और मै
पार्वति शक्ति स्वरूपा !
तुम मुक्त पुरुष और मै 
प्रकृति प्रेम-जंजीर !
तुम इश्वर निराकार 
मै जग में व्याप्त मोह-माया !
तुम भवसागर हो दुस्तर 
मै कल-कल बहती सरिता !
तुम प्रेम मै शांति 
तुम ज्ञान मै भक्ति 
तुम योग मै सिद्धि 
तुम नर्तक और मै 
नुपूर ध्वनि !
तुम चित्रकार मै तुलिका 
तुम शब्द मै भावना 
तुम कवियों के कवि 
शिरोमणी और मै 
तुम्हारी मनभावन 
कविता !

15 टिप्‍पणियां:

  1. तुम शब्द मै भावना
    तुम कवियों के कवि
    शिरोमणी और मै
    तुम्हारी मनभावन
    कविता !
    अनुपम भाव संयोजन ... ।

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  2. तुम सत्य शिव सुंदर और मै
    पार्वति शक्ति स्वरूपा !... ab aur kuch kahne ko raha kahan ... yahi sampoornta hai

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  3. तुम शब्द मै भावना
    तुम कवियों के कवि
    शिरोमणी और मै
    तुम्हारी मनभावन
    कविता !
    बहुत ही सुंदर रचना.....

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  4. तुम शब्द मै भावना
    तुम कवियों के कवि
    शिरोमणी और मै
    तुम्हारी मनभावन
    कविता ! बहुत ही खुबसूरत रचना.....

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  5. सुंदर भावनाओं से पगी रचना भक्तिभाव तक आती है. बहुत सुंदर.

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  6. न कोई मांग,न कोई शिकायत। न कुछ खोने का ग़म,न देने का अहंकार। यहां प्रेम अपनी सम्पूर्णता में प्रकट है।

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  7. सुंदर शब्द संयोजन...!!!
    अनुपम पोस्ट ......
    नए पोस्ट-प्रतिस्पर्धा-में स्वागत है ,...

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  8. .


    तुम सत्य शिव सुंदर
    और मैं
    पार्वती शक्ति स्वरूपा !
    तुम मुक्त पुरुष और मैं प्रकृति प्रेम-जंजीर !
    तुम ईश्वर निराकार मैं जग में व्याप्त मोह-माया !
    तुम भवसागर हो दुस्तर मैं कल-कल बहती सरिता !
    तुम प्रेम मैं शांति
    तुम ज्ञान मैं भक्ति
    तुम योग मैं सिद्धि
    तुम नर्तक और मैं नुपूर ध्वनि !
    तुम चित्रकार मैं तुलिका
    तुम शब्द मैं भावना
    तुम कवियों के कवि शिरोमणी और मैं तुम्हारी मनभावन कविता !

    आहाऽऽहाऽऽऽह… … …!

    लौकिक-अलौकिक , भौतिक-दैविक प्रेम का सुंदर चित्रण !
    सुमन जी ! जवाब नहीं आपका …

    बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  9. बेहतरीन प्रस्तुति...सुन्दर शब्दों के साथ बेहद भावपूर्ण रचना ...मनमोहक...!
    मेरे ब्लॉग पे आपका हार्दिक स्वागत है ..!

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  10. क्या बात है सुमन जी आज तो छा गईं बस । बहुत सुंदर कविता, प्रकृति पुरुष का रहस्य समेटे ।

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  11. बहुत ही सटीक भाव..बहुत सुन्दर प्रस्तुति
    शुक्रिया ..इतना उम्दा लिखने के लिए !!

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