शुक्रवार, 2 मार्च 2012

चाहता है मन ........


चाहता है मन 
फिके न हो यह 
जीवन के इन्द्रधनुषी 
रंग कभी भी,
देते रहे सदा
चटक,गहरे पन
 का अहसास 
किन्तु कहाँ ऐसा 
संभव होता है 
प्रकृति से संघर्ष 
मन का व्यर्थ हो 
जाता है !
जो रंग कल थे 
आज कहाँ ?
आज के कल 
कहाँ ठहरेंगे 
हर बसंत के बाद 
पतझर आता है 
कल रो-रो कर 
कहा किसी ने 
दिल न लगाना 
किसीसे भी 
प्रित के रंग भी 
अक्सर समय के
साथ फिके हो 
जाते है !

7 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन के इन्द्रधनुषी रंग....समय के साथ ही बदलते रहते है!...सुन्दर रचना!

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  2. यह वह रंग है जो समय के साथ गहराता जाता है। छूटता कभी नहीं।

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  3. समय होत बलवान...अति सुन्दर..

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  4. रंग कब एकसे रहे हैं,...एक कैनवस के चित्र भी समय के साथ धूमिल हो जाते हैं ...फिर यह तो जीवन है ! सुन्दर प्रभावपूर्ण रचना

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