रविवार, 16 सितंबर 2012

भोर हुई ....


भोर हुई 
उठो जागो 
सारे 
नील गगन में 
छुप गए 
तारे !
पूर्व दिशा में 
लाली छाई 
जीवन रस 
छलकाती उषा 
आई !
गुलशन-गुलशन 
फूल है खिले 
पंछी भी चले 
अंबर को छूने !
डाल-डाल पर 
चिड़िया फुदक 
रही है 
ठंडी-ठंडी हवा भी 
गा रही है !
पूजा घर में 
मधुर आरती बोले 
भोर हुई उठो 
जागो सारे !

15 टिप्‍पणियां:

  1. सूरज की लालिमा,फूलों की सौम्यता,पंछियों की चहचहाहट,सर-सर बहती हवा और मंदिर से आती मंगल ध्वनि- इन सब का एक साथ रसास्वादन बड़भागियों के ही हिस्से आता है।

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  2. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १८/९/१२ को चर्चा मंच पर चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका चर्चा मच पर स्वागत है |

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  3. बहुत सुन्दर और स्फूर्तिमयी प्रस्तुति...

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  4. कोशिश रहती है कि भोर का यह स्फूर्तिमय समय रोज़ देखा करूँ ..... बेहतरीन कविता

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  5. सुन्दर रचना ... भोर के साथ जीवन का प्रवाह शुरू हो जाता है ...
    बहुत खूब ...

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  6. सुबह को जगाबे का आह्वान सुंदर रूप में है।

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  7. वाह कितनी सुंदर मनमोहक भोर है ।

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  8. प्रकृति में सब भोर का आनंद लेते हैं- सिवाए मनुष्य के!

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