सोमवार, 3 दिसंबर 2012

क्यों न तुम भी गीत गाओ ....


मन,
जीवन है अगर गीत तो,                
क्यों न तुम भी गीत गाओ ...
रात ने कहा भोर से अंतिम विदा 
चाँद ने कहा चांदनी से अलविदा 
ओस बिखर कर पात पर मोती बनी 
हर कली मुस्कुरा कर पुष्प बन कर खिली 
इतराती संग हवा के मस्त सुरभि चली 
जब भौरों ने कहा रुनझुन-रुनझुन 
क्यों न तुम भी गुनगुनाओ ....
पंछियों की मधुर कलरव 
तितलियों की लुकछिप-लुकछिप 
खेल खेलती तरु-तरु पर 
तन की काली श्यामल-श्यामल  
मीठे गीत गाती है कोयल 
जब डोलता है संसार सारा 
क्यों न तुम भी डोल जाओ 
जीवन है अगर गीत तो 
क्यों न तुम भी गीत गाओ....

9 टिप्‍पणियां:

  1. रे मन गाओ गीत तुम, कलियों संग मुसकाओ |
    दुनिया ही जब डोल रही, तुम भी संग में डोल जाओ ||

    आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (05-12-12) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
    सूचनार्थ |

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  2. सुन्दर..
    बहुत प्यारी रचना..

    सादर
    अनु

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  3. प्रकृति संग जीवन को समरसता देती रचना

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  4. बहुत ही सुन्दर ,प्यारी रचना...
    सुन्दर सन्देश...
    :-):-)

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  5. बहुत सुन्दर ..गुनगुनाती हुई रचना

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  6. जीवन एक गीत ही है , जिसे हर दिल को गाना है !
    प्रेरक सन्देश है कविता में !

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  7. जीवन के इस गीत को मधुरता से गाना ही असल जीवन यापन है ... प्यारी रचना ...

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  8. क्या बात है...वाह!! शुभकामनाएँ.

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