सोमवार, 10 दिसंबर 2012

बारिश का मौसम नहीं था ....

आज,
अचानक भाव की 
बदली छाई 
हृदयाकाश में 
आंखे रिमझिम 
बरस गई 
बारिश का मौसम 
नहीं था ...

मैंने तो बस 
एक फूल ही 
मांगा था पूजा के
बदले में 
तुमने फूलों से ही
भर दी मेरी झोली 
बसंत का मौसम 
नहीं था ...

मैंने तो बस 
एक गीत ही 
मांगा था तुमसे 
गुनगुनाने के लिए 
तुमने तो मेरे 
जीवन को ही 
गीत बना डाला
मुझको छंदों का ज्ञान
नहीं था ...

पता नहीं लोग 
यह क्यों कहते है 
बिन मौसम कुछ 
नहीं होता .....

( प्यारे सद्गुरु ओशो के चरणों में नमन, उनके जन्मदिन पर )

7 टिप्‍पणियां:

  1. आँखों से बारिश तो बिना मौसम ही बरस जाती है ॥ सुंदर प्रस्तुति

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  2. पता नहीं लोग
    यह क्यों कहते है
    बिन मौसम कुछ
    नहीं होता .....

    bin maange moti mile maange mile na bhikh.

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  3. क्या खूब कहा-

    पता नहीं लोग
    यह क्यों कहते है
    बिन मौसम कुछ
    नहीं होता .....

    सुंदर रचना।

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  4. आँखें भर आईँ।
    गुरु समान दाता नहीं,याचक शीष समान |
    तीन लोक की सम्पदा,सो गुरु दीन्ही दान||

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  5. यह रचना कैसे मेरी नज़रों से छूट गयी.. प्रिय ओशो के चरणों में मेरा सादर नमन!! ओशो उत्सव पर बहुत ही प्यारी अभिव्यक्ति और नमन उस समबुद्ध सद्गुरु के लिए!!

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