मंगलवार, 28 मई 2013

छंद सधते नही है आज ...

आज,
अक्षर-अक्षर 
बिखर रहे है 
छंद सधते नहीं 
रूठ गये है 
सहज सरल 
भाव मन के ..,

कैसे हो स्वर 
साधन ?
कुछ अधिक 
ढीले ढाले है 
कुछ अधिक 
कसे हुए है 
मन वीणा के 
तार आज ...!

11 टिप्‍पणियां:

  1. मन की भी अजीब स्थिति होती है, मनोभावों को सशक्तता से अभिव्यक्त करती रचना.

    रामराम.

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  2. कभी कभी मन को ढीला भी छोड़ना चाहिए । तभी तो कसा जाएगा ...

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  3. सधे सुरीले दिनों से इतर कुछ दिन ऐसे भी होते हैं....
    देखना बीत ही जायेंगे....

    सादर
    अनु

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  4. बहुत ही सुन्दर एहसास,आभार.

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  5. मन के भावों को जड़ें देनेवाली सशक्त रचना के लिए बधाई

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  6. कुछ अधिक ढीले ढाले कुछ अधिक कसे

    कैसा असमंजस

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  7. कुछ अधिक ढीले ढाले कुछ अधिक कसे

    कैसा असमंजस

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  8. छंद सधते नहीं, ध्यान बंटता बहुत
    आज अक्षर बिखरते चले जा रहे !

    कुछ हैं ढीले बहुत,कुछ बहुत कस गए,
    मन की वीणा के तार अब सँभलते नहीं !



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  9. अति सुन्दर मनोभावोँ की प्रस्तुति । बधाई ।

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