सोमवार, 5 अगस्त 2013

देव तुमने … (बालकविता)


दस साल पहले बच्चों की एक पत्रिका के लिए लिखती थी,
उस पत्रिका में छपी थी यह बाल कविता !

देव तुमने,
कैसे बनाये खुबसूरत 
चांद-सूरज 
जगमग करते 
तारे सुंदर 
इतने दूर गगन में 
कैसे बुनी 
नीली-नीली 
चादर  …. !
देव तुमने,
कैसे बनाये 
खुबसूरत पेड़-पौधे 
पशु-पक्षी,नदियाँ 
पर्वत, सागर 
खुशबूदार इन फूलों में 
कैसे तुमने 
भरे है रंग  … !
देव तुमने,
कैसे बनाई 
धरती और 
धरती के 
कागज पर 
विविध मानव के 
कैसे बनाये 
चित्र  … !

13 टिप्‍पणियां:

  1. ये सवाल तो अब भी मेरे मन में आते हैं दी :-)

    बहुत प्यारी कविता..

    सादर
    अनु

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. बहुत सुंदर बाल कविता... कौतुहल से भरी हुई !!

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  4. बहुत सुंदर बाल कविता... कौतुहल से भरी हुई !!

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  5. सच में बच्चों के मन की सी..... बहुत ही रचना है

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  6. इसीलिये बच्चों को भगवान के तुल्य माना जाता है, उनमें यह आश्चर्य बाकी है जबकि थोडा बडा होते ही आदमी आश्चर्य खो बैठता है और दूर होजाता है अपने आपसे और ईश्वर से. शेष जिंदगी कटती है मोह माया की जकड में.

    बहुत ही गहन अर्थ छिपे हैं इस बाल कविता में.

    रामराम.

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  7. चिडियों का यह कलरव वृन्दन
    कोयल की मीठी , कुहू कुहू ,
    बादल का यह गंभीर गर्जन ,
    वर्षा ऋतु की रिमझिम रिमझिम
    हर मौसम की रागिनी अलग,सृजनाने वाला कौन ?
    मेघ को देख घने वन में मयूर नचवाने वाला कौन

    कामिनी की मनहर मुस्कान
    झुकी नज़रों के तिरछे वार
    बिखेरे नाज़ुक कटि पर केश
    प्रेम अनुभूति जगाये, वेश ,
    लक्ष्य पर पड़ती मीठी मार,रूप आसक्ति बढाता कौन ?
    देखि रूपसि का योवन भार प्रेम अभिव्यक्ति कराता कौन ?

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  8. बाल मन में उठती बातें कविता के रूप में अद्भुत चित्रण प्यारी कविता******

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  9. जितने स्वाभाविक प्रश्न....उतनी की स्वाभाविक अभिव्यक्ति ...सुन्दर..!

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  10. सुंदर कुतुहल भरी बाल कविता ।

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  11. यह प्रकृति सवालों से भरी पड़ी है...बहुत अच्छी कविता, बधाई और शुभकामनाए
    सादर/सप्रेम
    सारिका मुकेश

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