कल मैंने भी लिखा था कहीं कि ज़रा सोचकर देखें एक बार कि किस कदर सब्र का बाँध टूटा होगा उसका जिसने अंजाम की परवाह किये बिना जूता, चप्पल या थप्पड़ चला दिया!! सोचता हूँ आज से तीस साल पहले स्व.शरद जोशी जी ने बिल्कुल यही सम्भावनाएँ व्यक्त की थीं अपने आलेख में. आज उनकी बातों को शत-प्रतिशत सही होता देख कह सकता हूँ कि उनका साहित्य सजीव ही नहीं भविष्योन्मुख था!!
वाह !!
जवाब देंहटाएंआपको कैसे पता कि मैंने क्या लिखा था ……
अब ये जूता और चप्पल ही सही !
इस वतन के नौजवां भी,क्या करें ?
मंगलकामनाएं आपको !
बहुत सुंदर एवं समसामयिक रचना.
जवाब देंहटाएंकल मैंने भी लिखा था कहीं कि ज़रा सोचकर देखें एक बार कि किस कदर सब्र का बाँध टूटा होगा उसका जिसने अंजाम की परवाह किये बिना जूता, चप्पल या थप्पड़ चला दिया!!
जवाब देंहटाएंसोचता हूँ आज से तीस साल पहले स्व.शरद जोशी जी ने बिल्कुल यही सम्भावनाएँ व्यक्त की थीं अपने आलेख में. आज उनकी बातों को शत-प्रतिशत सही होता देख कह सकता हूँ कि उनका साहित्य सजीव ही नहीं भविष्योन्मुख था!!
बेहद सटीक अभिव्यक्ति, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
सब्र का बांध तोडने वाली ही हरकते हैं इन तथाकथित नेताओं की।
जवाब देंहटाएंसत्ता के लिये ये जूते चप्पल भी खा लेंगे।
जवाब देंहटाएंसटीक ... सब कुछ खा कर भी बने रहना चाहते हैं ...
जवाब देंहटाएंवोट के लिए कुछ भी करेगा ........यही है मोटो आज के नेताओं का
जवाब देंहटाएंबेहद सटीक अभिव्यक्ति
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