मैं अकेली खड़ी
कि,चांद छत पर
आ गया !
चांदनी शर्मा गयी
शाम हो गयी
जवान
कलि-कलि
चटक गयी ,
फूल बन कर
खिल गयी !
रोम-रोम
पुलक गया
ये जो तन
माटी का मेरा
चंदन सा
महक गया !
मन की सोन
चिरय्या कहती
प्यार मुझको
हो गया !
दिल की खिड़की से
गंध उसका
उड गया
छंद मेरी
कविता का
रस विभोर
कर गया !
कि,चांद छत पर
आ गया !
चांदनी शर्मा गयी
शाम हो गयी
जवान
कलि-कलि
चटक गयी ,
फूल बन कर
खिल गयी !
रोम-रोम
पुलक गया
ये जो तन
माटी का मेरा
चंदन सा
महक गया !
मन की सोन
चिरय्या कहती
प्यार मुझको
हो गया !
दिल की खिड़की से
गंध उसका
उड गया
छंद मेरी
कविता का
रस विभोर
कर गया !
प्यार की बेहतर अभिव्यक्ति ...
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