गुरुवार, 23 जनवरी 2014

सफल व्यक्ति …

सुबह से शाम की 
अंधी भाग दौड़  
मनुष्य को 
इतना  दौड़ाती है 
इतना दौड़ाती है कि ,
मनचाहा बहुत कुछ 
छूट जाता है जिसमे,
और अंत में 
सारी दुनिया को 
दिखायी देता है 
भीतरसे असफल 
पर उपरसे एक 
सफल व्यक्ति   … !
     ***
आज के इस 
दौर में 
नौकरी और हॉबी 
एक पत्नी तो 
एक प्रेयसी 
एक को मनाये 
तो दूजी 
रूठ जाती 
है    … !

8 टिप्‍पणियां:

  1. ज़िन्दगी की भाग-दौड़ और नौकरी तथा हॉबी के बीच चुनाव को लेकर जूझते हुए कई बार आपकी इस कविता को महसूस किया है!! मेरी सम्वेदनाओं को स्वर प्रदान किया है आपने!! आभार!

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  2. क्या उदाहरण दिया है :) ?
    मगर सच है !!

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  3. बहुत बढ़िया...कितनी आसानी से बड़ी बात समझा गयी आपकी कविता..

    सादर
    अनु

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  4. भावों का अद्भुत समायोजन जीवन की कड़ियाँ खोलती

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  5. दो नावों में पांव रखना आसां कहाँ होता है ...
    भावपूर्ण ...

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  6. सही बात, हर खुशी की कीमत है ...

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  7. वाह नौकरी और हॉबी क्या सिमिली चुनी है मज़ा आ गया।

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