रविवार, 27 जुलाई 2014

टमाटर में वही ....




बैंगन में वही 
टमाटर में वही 
सृष्टि के कण-कण में वही 
कहते साधु संत महान 
सहन नहीं कर पाते
लेकिन 
आदमी में भगवान  … !

9 टिप्‍पणियां:

  1. आज कुछ नहीं कहूँगा.. क्योंकि कविता की अंतिम पंक्ति ने नि:शब्द कर दिया है!! थोड़े में सब कुछ कह दिया है.

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  2. आदमी , इंसान तो बन ले पहले ….
    मंगलकामनाएं इस टमाटर को ! भाव पहले ही बढे हुए हैं !!

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  3. अंतिम लाइन ... गहरा सत्य, गहरा कटाक्ष ... बहुत कुछ कहता हुआ ...

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  4. टमाटर में तो सबको भगवान ही दिखाई दे रहे हैं।
    पर सचमुच आदमी कब आदमी में ही भगवान को देखना सीखेगा।

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  5. उम्दा और बेहतरीन... आप को स्वतंत्रता दिवस की बहुत-बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ

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  6. पुनश्च:
    .... नहीं !!
    आदमी इंसानियत खो रहा है !

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  7. @ आदमी इंसानियत खो रहा है !
    yah sahi hai

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  8. गहरा कटाक्ष ... बहुत कुछ कहता हुआ

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