सोमवार, 21 जनवरी 2008

वर्ष एक बित् गया

एक पल आया
एक पल गया
पल एक हँस्सा गया
पल एक रुला गया
जीवन पाटीपर कभी गम के
कभी कुशियोंके रंग भरकर
दिवस एक बित् गया
वर्ष एक बित् गया
समय कहाँ कब रुकता है
कालचक्र चलता रहता है
कभी आशा है कभी निराशा
सफलता में छुपी असफलता
सुख-दुःख में बंधा है जीवन
धुप-छाव का खेल तमाशा
दूर है मंजिल राही अकेला
रात है छोटी सपने जादा
जो साकार इन्हें है करना
कदम कहते है रूक जाना
समय कहता है चलते जाना
दूर मंजिल को है पाना
दिवस एक बित् गया
वर्ष एक बित् गया