बुधवार, 30 नवंबर 2011

प्रिय तुम छिपो चाहे जहाँ ........


प्रिय तुम छिपो चाहे जहाँ 
जिस रूप में भी, सहज 
मै तुम्हे पहचान लुंगी 
हम दोनों में भेद कहाँ ?
तुम सत्य शिव सुंदर और मै
पार्वति शक्ति स्वरूपा !
तुम मुक्त पुरुष और मै 
प्रकृति प्रेम-जंजीर !
तुम इश्वर निराकार 
मै जग में व्याप्त मोह-माया !
तुम भवसागर हो दुस्तर 
मै कल-कल बहती सरिता !
तुम प्रेम मै शांति 
तुम ज्ञान मै भक्ति 
तुम योग मै सिद्धि 
तुम नर्तक और मै 
नुपूर ध्वनि !
तुम चित्रकार मै तुलिका 
तुम शब्द मै भावना 
तुम कवियों के कवि 
शिरोमणी और मै 
तुम्हारी मनभावन 
कविता !

सोमवार, 14 नवंबर 2011

आयी भोर .......

भोर सुबह में
पेड़-पौधे जागे,
पंछियों के मीठे 
गीत जागे !

खिली कलियाँ 
फूल महके,
कलि-कुसुमों पर 
भौरे इतराये !

लिये नये स्वप्न
नई आशा
आलस त्यागकर 
जागी उषा !

अब तो जागो मन 
श्वेत परिधान पहन कर 
स्वागत करने
बड़े सवेरे 
आयी भोर ......!!