मंगलवार, 24 दिसंबर 2013

एक बेहतर दुनिया देखने के लिए … !


अगर  आप 
अपनी प्यारी सी 
बिटिया से 
करते है 
बहुत बहुत 
प्यार दुलार 
तो फिर 
बस इतना -सा 
करना 
उसके सपने 
अपनी आँखों  
से  नहीं 
उसकी आँखों से 
देखना 
एक बेहतर 
दुनिया देखने 
के  लिए    … !

गुरुवार, 14 नवंबर 2013

जहाँ कवितायेँ नहीं, ऋचायें झरती है …

ओ  कवि  मन ,
आखिर कब तक 
यूँ  ही शब्दों से 
खेलते रहोगे  ? 
अविराम कब तक 
भटकते  रहोगे  ?
बहुत हो चुका 
प्रेम सपनों से 
कोरी कल्पनाओं से 
चलो शब्दों के पार 
परा  के पार की 
दुनिया में , जहाँ 
शब्द नहीं मौन 
बोलता है, जहाँ 
कवितायेँ नहीं ,
ऋचायें  झरती है  !
दुनिया  की सारी 
चिंताओं  से दूर 
सारी हदों के पार 
केवल अनहद में  
विश्राम ही विश्राम 
है जहाँ  पर  … !!

बुधवार, 23 अक्तूबर 2013

छुटते जा रहे है कुल -किनारे


दिन ब दिन 
सूखती  जा रही है 
जीवन सरिता 
छुटते जा रहे है 
कुल-किनारे 
समय था तब 
समझ न थी 
अब समझ है 
लग रहा है 
समय कम है 
न बीते एक 
लम्हा भी 
तेरी याद बिन 
रिक्त न बीते 
हे ईश्वर ,
ऐसे ही बीते 
तेरे ही गीत 
गुनगुनाते   
हर पल 
हर लम्हा  … 



शनिवार, 19 अक्तूबर 2013

तुम्हारा पता …


तुम्हारा पता 
हर कोई 
बता देता है 
पर, 
कोई एक 
बन जाता है 
मील का पत्थर 
इन्ही निशानों का 
लेकर सहारा 
चल तो देती हूँ 
एक कदम 
तुम्हारी  ओर  
इसी उम्मीद में कि 
तुम  भी चल 
दोगे प्रेम से 
दो कदम 
मेरी ओर     … !!


सोमवार, 16 सितंबर 2013

पत्ते -पत्ते पर लिख कर …


                 
  जब,
सुबह -सुबह 
पत्ते -पत्ते पर 
लिख कर 
प्रणय छंद  
हवा ने 
हौले से छुआ 
गुलाबी तन 
   तब,
खिल कर 
महक उठा 
 गुलाब 
मेरे आँगन में  ....! 

मंगलवार, 3 सितंबर 2013

खुबसूरत शब्द …

सुन्दर,
खुबसूरत 
शब्दों से 
सामने वालों को 
प्रभावित कर, 
विद्वत्ता पूर्ण 
तर्कों से 
उनका मुंह 
बंद करना 
जितना 
आसान है,
उन्ही सुन्दर 
शब्दों से उन्ही 
विद्वत्ता पूर्ण 
तर्कों से, 
खुद की 
जन्दगी को 
खुबसूरत 
बना कर 
अर्थपूर्ण 
बना देना 
उतना ही 
मुश्किल 
काम है    … !!

बुधवार, 28 अगस्त 2013

प्रतियोगिता ...

इन दिनों 
हमारे देश का 
सारा चिंतन 
प्याज से 
होता हुआ 
रुपये और चरित्र 
पर आकर 
अटक गया है 
क्यों न हो 
रुपये और चरित्र में 
इन दिनों 
भारी प्रतियोगिता 
जो चल रही है 
कि, कौन कितना 
अधिक गिरता 
है !


गुरुवार, 22 अगस्त 2013

सूफियाना इश्क ….

प्रेम,
व्यक्ति को बदल कर 
भिखारी से सम्राट जैसा 
बना देता है लेकिन 
कई बार अपेक्षायें 
ऐसा होने नहीं देती 
समय के साथ-साथ 
हर चीज बदल जाती है 
प्रेम भी,
जब ह्रदय प्रेम से 
लबालब भर जाता है 
तब प्रेम को ग्रहण 
करने वाला पात्र भी 
छोटा पडने लगता है 
शायद इसी कारण से 
इश्क भी सूफियाना 
हो जाता है !
क्या प्रेम एक 
रासायनिक प्रक्रिया 
का नाम है  … ??

सोमवार, 5 अगस्त 2013

देव तुमने … (बालकविता)


दस साल पहले बच्चों की एक पत्रिका के लिए लिखती थी,
उस पत्रिका में छपी थी यह बाल कविता !

देव तुमने,
कैसे बनाये खुबसूरत 
चांद-सूरज 
जगमग करते 
तारे सुंदर 
इतने दूर गगन में 
कैसे बुनी 
नीली-नीली 
चादर  …. !
देव तुमने,
कैसे बनाये 
खुबसूरत पेड़-पौधे 
पशु-पक्षी,नदियाँ 
पर्वत, सागर 
खुशबूदार इन फूलों में 
कैसे तुमने 
भरे है रंग  … !
देव तुमने,
कैसे बनाई 
धरती और 
धरती के 
कागज पर 
विविध मानव के 
कैसे बनाये 
चित्र  … !

रविवार, 21 जुलाई 2013

तुम्हारी दी हुई रौशनी …


सुबह से शाम
चलने को 
चलती हूँ 
दुनिया की 
भीड़ में 
दुनिया के 
साथ … 
आहिस्ता -आहिस्ता 
तम की ,
अँधेरी सुरंग में 
तुम्हारी 
दी हुई रौशनी 
ओढ़ कर 
उस रौशनी के 
साथ …। 

शुक्रवार, 5 जुलाई 2013

भावना में बह गये कविता के छंद ...

      
      बारिश  भी ,
बड़ी अजीब होती  है 
    कहीं बूंद-बूंद को 
       मानव तरसे 
           कहीं 
     बाढ़  ले आयी    ...
                   
        कही  बारिश  
साथ ले आयी किसी की 
      यादों  की  सौंधी 
            गंध 
  भावना में बह गये 
       कविता के 
         छंद ...!

मंगलवार, 25 जून 2013

प्रेम शब्द, जिसमे जादू है ....


अनेक शब्द,
लोक-व्यवहार
के चलते
भले ही अपने
अर्थ, उपयोगिता
खो रहे हो
लेकिन प्रेम
अब भी
ऐसा शब्द है
जिसमे जादू
है ...!

***

किसी से हम
इसलिये प्रेम
करते है कि,
उससे हमारी
सारी मनोकामनायें
पूरी होंगी
तब समझ लेना
हम उससे
प्रेम नहीं
प्रेम करने का
बहाना कर
रहे है ....!

बुधवार, 19 जून 2013

एकता का महत्व ....

एक दिन ,
रंगों में बहस छिड़ 
गई कि ,वही  सबसे 
अच्छा रंग है ..
"मै जीवन व आशा का 
प्रतीक हूँ  हरे रंग ने 
दावा किया " ..
"मै आसमान  व समुद्र की 
गहराई का प्रतीक हूँ 
मेरे बिना जीवन में 
शांति ,सुख असंभव है 
नीले  रंग ने दावा किया "...
इस प्रकार से हर रंग 
अपनी-अपनी योग्यता का 
बखान करने लगे ...
इतने मे ,
आसमान  में जोर-जोर से 
बिजली कडाड कडकी 
काले -काले बादल छा गए 
जोर की वर्षा  होने के 
आसार दिखाई देने लगे !
सारे रंग बिखरने के 
डर  से एक दूसरे के 
पास  आने लगे 
एक दूसरे का हाथ 
थाम कर आकाश में 
इन्द्रधनुष बन कर 
दुनिया को एकता का 
पाठ पढ़ा कर 
यह सन्देश देने 
लगे कि ,
हर रंग एक दुसरे के 
बिन अधुरा है .....!!

मंगलवार, 28 मई 2013

छंद सधते नही है आज ...

आज,
अक्षर-अक्षर 
बिखर रहे है 
छंद सधते नहीं 
रूठ गये है 
सहज सरल 
भाव मन के ..,

कैसे हो स्वर 
साधन ?
कुछ अधिक 
ढीले ढाले है 
कुछ अधिक 
कसे हुए है 
मन वीणा के 
तार आज ...!

गुरुवार, 9 मई 2013

फूलों के बीज ....


मानसून आते ही 
ठंडी-ठंडी हवायें 
सरसराने लगती है 
हृदयाकाश में छाये 
भावों के मेघ 
मन की धरती पर 
बरसने को उतावले 
हो जाते है ...
बारिश की इन 
भाव भरी रिमझिम 
फुहारों से जब 
मन की मिट्टी 
गीली होने लगती है 
तब बो देती हूँ 
इस गीली मिट्टी में 
फूलों के
मन पसंद बीज 
और जब यह बीज 
टूटकर,गलकर
अंकुरित हो 
पौधे हवावों की 
सरसराती ताल पर 
फूलों सहित 
झूम झूम कर नाचने, 
गीत गाने लगते है 
तब फूलों की 
इस सुगंध से 
सारा जीवन महकने 
लगता है  जैसे .....!

( फूलों के बीजों का अभाव है 
  नहीं तो मिट्टी में भी फूल 
  छिपे होते है ..)

शनिवार, 13 अप्रैल 2013

नानी के गाँव है जाना ... ( बालकविता )


ना कुछ सीखना,
ना समर कैंप में जाना 
मुझे तो छुट्टियों में 
नानी के गाँव है जाना ...

जहाँ,
कल-कल नदी एक बहती 
मधुर नाद सुनाती रहती 
गीली रेत पर नंगे पैर चलना 
ढेर सारी है सीपियाँ बटोरना 
नानी के गाँव है जाना ...

शीतल स्पर्श वह पानी का 
पैरों को गुदगुदाना मछलियों का 
आटे की गोलियाँ बना-बनाकर 
उनको है खिलाना 
नानी के गाँव है जाना ...

हरी-भरी वनराई और 
वनराई में गूँजता है जब 
चरवाहे के बन्सी का स्वर 
नाच उठता मन मयूर 
वन-उपवन में है विचरना 
नानी के गाँव है जाना ....

आमों की अमराई 
और ममता की छाँव 
भोले-भाले लोग 
प्यारा-सा वो गाँव 
डफली की ताल पर 
लोकगीत है सुनना 
नानी के गाँव है जाना ...!!

बुधवार, 20 मार्च 2013

क्षणिकाएँ ...


जैसे ...
आकाश की 
पृष्ठभूमि पर 
बादल
जैसे ...
सागर की 
पृष्ठभूमि पर 
लहर
वैसे ही 
चेतना की 
पृष्ठभूमि पर
विचार ...!

***
सुख के क्षण 
सरपट दौड़ते है 
दुःख के क्षण 
काटे नहीं 
कटते 
लंगड़ा कर 
चलते है 
शायद इसे ही 
समय सापेक्षता का 
सिद्धांत कहते है ...!

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

कौन नींद से मुझे जगाता ...


अक्सर मै 
सोचती हूँ 
फिर भी 
मन है कि 
समझ न पाता 
साँझ-सवेरे 
नील गगन में, 
अनगिनत 
झिलमिल दीप 
कौन जलाता 
कौन बुझाता !
भोर से पहले 
पंछी जागते,
फूल,पत्तों पर 
कौन धवल 
मोती बिखराता !
सवेरे-सवेरे 
फूल खिल जाते, 
हवाओं में कैसे 
सौरभ भर जाता !
पल भर में 
भौरों को कौन 
सन्देश पहुंचाता !
कोयल के सुरीले 
कंठ से गाकर
कौन नींद से 
मुझे जगाता .....?

रविवार, 10 फ़रवरी 2013

ढाई अक्षर प्रेम के ....


जितने चाहो 
लिख डालो 
प्रेम ग्रंथ 
किन्तु, 
ढाई अक्षर 
प्रेम के 
समझ न आते 
अक्सर 
कहते सुनते 
हर बार 
मन के भाव 
अनकहे ही 
रह जाते ....!

    ***
प्रेम क्या है ?
सदियों से अनेकों ने 
अनेकों बार अनेक 
रीतियों से,अभिव्यक्तियों से 
कहना चाहा 
प्रेम की परिभाषा को 
किसी ने समझा भी 
या नहीं पता नहीं 
किस भांति ?
जब भी कहना चाहा 
तब शब्दों में कहाँ 
व्यक्त हो पाया वो 
जो शेष है अभी ....!

रविवार, 20 जनवरी 2013

गंगा को मैली कर के ....


मन मैला और 
तन को धोने 
चले कुंभ के 
मेले में 
जहाँ पापों को
मिटाने गए थे 
वही एक और 
पाप कर आए 
गंगा को मैली 
कर के ....!

शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

बदलाव ...


आश्रम में तोड़ फोड़ 
शिविर में लगाई आग 
विरोध के दौरान 
थोडा धैर्य रखिए 
हो रहा बदलाव ...!

        ***
तब उस विंडो के सामने 
खड़े रहने की थी मनाई 
अब इस विंडो के सामने 
दिन-रात बैठने आजादी 
क्या यह बदलाव नहीं ...?