शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

मुहब्बत की चांदनी खिली है

आज न चलेगा
तुम्हारा
कोई बहाना
जैसे भी हो
आओ छतपर
देखो
शरद चांदनी खिली है
रात है नशीली
चांदनी
आज मन भी
है नशीला
तुमसे कहने को
बात है
कुछ ख़ास
तनिक बैठो
पास !
कुछ कह लेने दो
कुछ सुन लेने दो
धडकनों को
आपस की बात
आओ
चांदनी ओढ़े
बिछाए चांदनी
हम तुम
आकंठ पिये
अंजुली भर-भर कर
मुहब्बत की चांदनी
खिली है !

मंगलवार, 14 सितंबर 2010

मेरे भी घर आओ गणपति (बालकविता )

गणेश चतुर्थी जब-जब आती !
पढाई से हमको छुट्टी मिलती !!


इंतजार हम पल-पल करते
वर्ष में क्यों आप एक बार आते !!

काश आपकी भी होती कार
चूहे पर क्यों होते सवार ?

गांव -गांव में, शहर-शहर में !
गली-गली में, घर-घर में !!

बरसो से आप आते - जाते !
प्रेम की खातिर मोदक खाते !!

बारहों महीने पानी में नहाते
क्या बोर नहीं हो जाते ?

एक बार मेरे भी घर आओ !
ज्ञान की जोती जलाकर जाओ !!

मेरी भी पुकार कुछ सुनना !
यही है मेरी गणेश जी प्रार्थना !!