बुधवार, 30 सितंबर 2009

प्रेम के दीप जलाओ

उमंग उल्लास आज मनपर है छाया
जगमग -जगमग दीपो का त्यौहार आया !
शरद के आगमन का यह जादू सारा
नववधू सी सज गई सारी वसुन्दरा!
अम्बर पर, धवल जोत्स्ना बिखर रही है
हरियाली पर ओस की बुँदे मोतीसी चमक रही है !
उध्यानोमे पराग भरे पुष्प खिलखिला रहे है
शाख -शाख पर चिडिया फुदक रही है !
वर्षा में उफनती सरीता, अब धीर मंथर बह रही है
कमल पंखुडियों पर भ्रमर गुनगुना रहे है !
आज प्रकृतिका जैसे हरदय खिल गया दूना
खुशियों से महक रहा है घर आँगन का कोना !
घर-घर में प्रेम के दीप जलाओ
दीपावली का पवन पर्व मनाओ !

मंगलवार, 22 सितंबर 2009

मृत्यु

हर पल मरकर जीती हूँ
मै मृत्यु से बहुत डरती हूँ
रोज निहारती हूँ दर्पन में ख़ुद को,
चेहरे की झुरियों को, पकते केशों को,
आँखों के नीचे काले पड़ते वर्तुलों को
और सोचती हूँ
अभी-अभी तो खिला था
जीवन का बसंत
नही, अभी न हो मेरा अंत
मै जीवन संध्या से घबराती हूँ
यहाँ हर रोज कही किसी सड़क पर
देखती हूँ दुर्घटना से क्षत विक्षित
लाशो को , अस्पताल में दम तोड़ते
प्रिअजनो को चिता पर जलते
बचती हूँ इन प्रश्नों से
क्या है जीवन? क्या है मृत्यु ?
वो रातों के सन्नाटे में
भरी दोपहर के उजाले में,
हर पल हर मोड़ पर खडे
होटों पर कुटिल मुस्कान लिए मुझसे
नजरे मिलाने का दुस्साहस करती है
मै नजरे चुराने की कोशिश करती हूँ !

बुधवार, 16 सितंबर 2009

छुईमुई मेरे आंगन में

छुई मुई मेरे आंगन में
साँझ ढलते ही
मुरझाती है
सुबह होते ही
खिल जाती है
हरे भरे परिधान में
छुईमुई मेरे आंगन में
नाजुक सा तन बदन
सुमन सी सुकुमारी
मृदु स्पर्श मात्र से
सिमट-सिमट कर
रह जाती
आते -जाते सबके
पुलक जगाती तन मन में
छुईमुई मेरे आंगन में
उसके निकट बैठू तो
आती है मुझको
उससे चंपा सी गंध
पत्ते -पत्ते पर
लिख लाती है
नित नवे छंद
गुलाब भी झूमता है
मेहँदी के गीत में
छुई- मुई मेरे आंगन में!