रविवार, 18 सितंबर 2011

शब्द बेच रहीं हूँ आओं !

खट्टे-मीठे इन शब्दों में,
अर्थ मधुर भर लायी हूँ
परख-परख कर इनका
मूल्य लगाओ !
शब्द बेच रहीं हूँ आओ !

अन्तस्तल है सरिता-सागर
भरा भावना का इसमें जल
गीत,कविता है मुक्ता-दल
इसे लायी हूँ चुन-चुनकर
जाँच परख कर तोलो !

क्या पता कल आऊं न आऊं मै
लेना न  लेना तुमपर है निर्भर
रूपये पैसे की बात ही, छोड़ो
केवल स्नेह के बदले मोल लेलो
निज ह्रदय में सजाओ आओं !

भाव बेच रहीं हूँ   आओं !


रविवार, 4 सितंबर 2011

किस चित्रकार ने रंग भरे है !

सुबह की सिंदूरी लाली में,
सूरज की सुनहरी किरणों में,
ओस बिखरी हरियाली में,
किस चित्रकार की तुलिका ने,
रंग भरे है इनमे मोहक!
और मै अपने घर-आंगन की,
रंगोली में रंग भरती रही
जीवनभर !

हवाओं की सांय-सांय में,
पायल-सी खनकती पत्तियों में,
बारिश की रिमझिम बरसातों में,
किस गायक के सुरों ने,
स्वर भरे है इनमे अद्भुत !
और मै अपने मन वीणा के तारों में ही,
उलझी रही जीवनभर !

पूनम की मदभरी रातों में,
चन्द्रवदना यामिनी को
सागर की लहरों पर,
किस कवि की कलम ने
कविता लिख भेजी मनोहर !
और मै अपनी आधी-अधूरी
कविताओं पर मुग्ध होती रही
जीवनभर !