रविवार, 21 जुलाई 2013

तुम्हारी दी हुई रौशनी …


सुबह से शाम
चलने को 
चलती हूँ 
दुनिया की 
भीड़ में 
दुनिया के 
साथ … 
आहिस्ता -आहिस्ता 
तम की ,
अँधेरी सुरंग में 
तुम्हारी 
दी हुई रौशनी 
ओढ़ कर 
उस रौशनी के 
साथ …। 

शुक्रवार, 5 जुलाई 2013

भावना में बह गये कविता के छंद ...

      
      बारिश  भी ,
बड़ी अजीब होती  है 
    कहीं बूंद-बूंद को 
       मानव तरसे 
           कहीं 
     बाढ़  ले आयी    ...
                   
        कही  बारिश  
साथ ले आयी किसी की 
      यादों  की  सौंधी 
            गंध 
  भावना में बह गये 
       कविता के 
         छंद ...!