मंगलवार, 17 मई 2011

छंद रचने के क्षण .....

रात के क्षण
सुबह से शाम
भागते दौड़ते
थक गया तन
जग क़ी राहें !
सुबह से शाम
कहते सुनते
उब गया मन
जग से बाते !
छाया तम है
गहरा !
निर्जन रात
एकांत, चारोओर
रजनी का पहरा !
उद्वेलित श्वास,
मन उदास
आँखे नम है !
क्यों उमड़ने लगी
आज फिरसे
भग्न अंतर क़ी
निराशा
छंद रचने के क्षण !

शनिवार, 14 मई 2011

मई का महिना .......


गरमी के दिन 
मई का महिना 
आग उगलता सूरज 
पिघलती सड़क 
भागते दौड़ते लोग 
पसिनेसे तरबतर,
चारों ओर मोटर 
गाड़ियों का शोर 
सुबह से शाम 
निरंतर !
मंजीलों पर मंजील
गगनचुम्बी  इमारते 
छोटे-छोटे घर 
छोटे-छोटे परिवार !
बंद सब खिड़कियाँ 
झांकती नहीं चांदनी 
छत ना आँगन !
कूलर पंखे की घर्र-घर्र 
रातभर,
नींद में डालते खलल 
मच्छर,
घुटनभरी जिन्दगी 
मुश्किल है जीना 
मई का महिना !

गुरुवार, 5 मई 2011

श्रद्धांजलि!!

कल
एक प्यारा मित्र
महाप्रयाण पर
चला गया!
और दिल में
छोड़ गया
कभी न भरने
वाली रिक्तता !
अंतिम विदाई स्वरुप
फूल, पुष्प मालाएं
अर्पित की सबने
मौन दिल रोया मेरा
मैंने अपने अश्रु

छुपाये !
शमशान में.....
धू-धूकर जलती
चिता ने कहा जैसे
नज़र भर कर देखो
और समझो वक्त का
इशारा क्या कहता है
जो कल आया था
आज जा रहा है
व्यर्थ गुरूर न कर
अपनी उपलब्धियों पर,
अब भी वक्त है
संभलने को !

मंगलवार, 3 मई 2011

जब तुमसे प्रेम हुआ है .......


तुमको अपना हाल सुनाने 
लिख रही हूँ पाती 
 प्रिय प्राण मेरे 
यकीन मानो 
अपना ऐसा हाल हुआ है 
जबसे मुझको प्रेम हुआ है !
जग का अपना दस्तूर पुराना 
चरित्रहिन् कहकर देता ताना 
बिठाया चाहत पर 
पहरे पर पहरा 
नवल है प्रीत प्रणय की 
कैसे छुपाऊं
ह्रदय खोलकर अपना 
कहो किसको बताऊँ 
अपना भी जैसे 
लगता पराया है 
जबसे मुझको प्रेम हुआ है !
कौन समझाये इन नयनों को 
बात तुम्हारी करते है 
पलकों पर निशि दिन 
स्वप्न तुम्हारे सजाते है 
जानती हूँ स्वप्नातीत 
है रूप तुम्हारा 
मन,प्राण मेरा 
उस रूप पर मरता है 
जब से मुझको प्रेम हुआ है !
तुम्हारी याद में,
तुम तक पहुँचाने को 
नित नया गीत लिखती हूँ 
भावों की पाटी पर प्रियतम 
चित्र तुम्हारा रंगती हूँ 
किन्तु छंद न सधता 
अक्षर- अक्षर बिखरा 
थकी तुलिका बनी 
आड़ी तिरछी रेखाएँ
अक्स तुम्हारा नहीं ढला है 
जब से मुझको प्रेम हुआ है !