शनिवार, 27 नवंबर 2010

भाव सुमन

सुरमई हुआ विशाल अम्बर
तम को हरने आया भास्कर
सजी धजी धरती सुंदर
देती सबको प्रेम निरंतर
ओस बिखरी मोती बनकर
फूल खिले तरु-तरु पर
कोयल गाती गीत मनोहर
खग गण डोलती सुर-तालपर
मंद बहती नदियाँ ,निर्झर
समीर भागे गिरिशिखरोंपर
रुके न यहाँ वहाँ पलभर
पथिक खड़ा हो कोई तटपर
तृषा हरने नील सरोवर
बहर के आया है गुलमोहर
मन्त्रमुग्धता छाई मनपर
जब मन में हो श्रद्दा प्रभुपर
कण-कण में होते उसके दर्शन
तब प्रभु चरणों में झर जाते है
यह भाव सुमन !

गुरुवार, 4 नवंबर 2010

आई है दीवाली !

रुनझुन-रुनझुन
ज्योति की पायल
बजी जागी प्रभात
जैसे नभ में छिड़की
कुंकुंम लाली
जगमग-जगमग
आई है दीवाली!
फूल-सी महके
जीवन फुलवारी
आँगन-आंगन
सजी रंगोली
बंधी तोरण द्वार -द्वार
फूल मालाओंकी
झालर न्यारी
मनभावन अल्पना
प्रांगण सुचित्रित कर
सुख बन सुषमा बन
घर-घर छायी
आई है दीवाली!
तम की विकट
निशा बीती
चिर सत्य की
विजय हुई
श्री रामचंद्र की
हुई जय जयकार
दिग-दिगंत के
छोर तक गूंजी
जयभेरी
दीप जले खुशियों के
जगमग -जगमग
अलोक वृष्टि
चहुओर हुयी
आई है दिवाली !