गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

जाड़े की नर्म धूप ....


कंपकपाती 
सर्द हवा 
शीतल सब 
गात है 
धरती के 
आगोश में 
उंघ रही 
रात है !

कुछ-कुछ 
सोया-सा 
तन 
कुछ जागा-सा 
मन है 
निंदियारी 
पलकों में 
सपनों के 
रूप है !

जब भोर
आंख खुली तो, 
प्राची में
फैल गए थे 
सिंदूरी रंग 
धीरे से ...
आंगन में 
सरक आयी थी 
जाड़े की नर्म 
धूप है ....!

सोमवार, 10 दिसंबर 2012

बारिश का मौसम नहीं था ....

आज,
अचानक भाव की 
बदली छाई 
हृदयाकाश में 
आंखे रिमझिम 
बरस गई 
बारिश का मौसम 
नहीं था ...

मैंने तो बस 
एक फूल ही 
मांगा था पूजा के
बदले में 
तुमने फूलों से ही
भर दी मेरी झोली 
बसंत का मौसम 
नहीं था ...

मैंने तो बस 
एक गीत ही 
मांगा था तुमसे 
गुनगुनाने के लिए 
तुमने तो मेरे 
जीवन को ही 
गीत बना डाला
मुझको छंदों का ज्ञान
नहीं था ...

पता नहीं लोग 
यह क्यों कहते है 
बिन मौसम कुछ 
नहीं होता .....

( प्यारे सद्गुरु ओशो के चरणों में नमन, उनके जन्मदिन पर )

सोमवार, 3 दिसंबर 2012

क्यों न तुम भी गीत गाओ ....


मन,
जीवन है अगर गीत तो,                
क्यों न तुम भी गीत गाओ ...
रात ने कहा भोर से अंतिम विदा 
चाँद ने कहा चांदनी से अलविदा 
ओस बिखर कर पात पर मोती बनी 
हर कली मुस्कुरा कर पुष्प बन कर खिली 
इतराती संग हवा के मस्त सुरभि चली 
जब भौरों ने कहा रुनझुन-रुनझुन 
क्यों न तुम भी गुनगुनाओ ....
पंछियों की मधुर कलरव 
तितलियों की लुकछिप-लुकछिप 
खेल खेलती तरु-तरु पर 
तन की काली श्यामल-श्यामल  
मीठे गीत गाती है कोयल 
जब डोलता है संसार सारा 
क्यों न तुम भी डोल जाओ 
जीवन है अगर गीत तो 
क्यों न तुम भी गीत गाओ....

शनिवार, 10 नवंबर 2012

रात की निस्तब्धता को चीर कर ...


विश्वास
श्रद्धा की 
ज्योति 
ब भी 
गमगाने
लगती है 
तब तुम 
चूपके से 
घर मेरे 
आ जाते हो 
बुझते इन 
दीपों में 
स्नेह तेल
भर जाते हो 
रात की    
निस्तब्धता को 
चीर कर ...

शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

एक दिन का देवता ....


कल वर्ष भर के 
सारे सुप्त सुख 
लौट आये थे
एक दिन में,
आल्हादित हुआ 
था मन अपने इस
एक दिन के 
भाग्य पर 
समय और भाग्य ने 
एक दिन का देवत्व 
होने का गौरव 
जो प्रदान किया था !
दुसरे दिन ...
सुबह पांच बजे 
आलार्म का 
कर्णकर्कश स्वर 
मानो कह रहा था 
अगर एक दिन का 
देवता होने का भ्रम 
दूर हुआ हो तो उठो 
"उठो ...देव 
कितने सारे काम 
करने है ..
डेयरी से दूध लाना है 
चाय बनानी है 
पीने का पानी 
नल से भरना है 
सब्जी लानी है 
गिनती बढती जा
रही थी  .....!

गुरुवार, 1 नवंबर 2012

हम भी महक ले जरा .....

चाँद ,
महक तुम्हारी
बढ़ जायेगी खास
फलक पर आ
हम भी महक
ले जरा ...

जी भर कर
निहार लेंगे
तूम  भी
निहार लो
हमे  जरा ....

आज
बादलों में क्यों
छूप गये हो तूम
स्याह बादल
हटाओ जरा ....

रविवार, 21 अक्तूबर 2012

कोई एक कविता ...

फूल का महत्व 
उसके सुगंध में 
निहित है तो,
कविता का महत्व 
उसके भावों में 
निहित है !
कितना ही सुंदर 
फूल क्यों न हो 
गंध रहित हो तो 
महत्वहीन लगता है 
जब तोता अपनी 
चोंच गुलर के 
फूल पर मारता है 
तब भीतर से निकल
आती है गंधहीन रूई
ऐसे ही लगती है 
कोई एक कविता 
पढ़ते-पढ़ते 
दिल को छू लेती है 
कोई एक कविता !

सोमवार, 8 अक्तूबर 2012

जीवन का सच ...


मृत्यु 
जन्म के साथ ही 
जन्म लेती है 
बढती है हर पल 
प्रौढ़ होती है !
मृत्यु 
आती है कहीं भी 
कभी भी हर घडी 
हर मोड़ पर खड़ी !
मृत्यु 
आती है कभी 
रात के सन्नाटे में 
चुपचाप दबेपांव 
पंजों के बल !
मृत्यु 
आती है कभी 
दोपहर के उजाले में
ललकारती हुई  
होटों पर कुटिल
मुस्कान लिये !
मृत्यु 
जीवन का सच 
रामनाम सत्य 
इस सत्य को जब तक 
स्वीकार नहीं करेगा 
नहीं करेगा समर्पण 
जीवन की धार में 
तब तक लड़ता रहा है 
लड़ता रहेगा वंशज 
भगीरथ का काल से 
नहीं मानेगा हार .....

शनिवार, 6 अक्तूबर 2012

शंख-सीप...


मन नदी 
मान सरोवर 

समीप किनारे
शंख-सीप 

उपर लहरे 
निचे जल 

भीतर गहरे 
मुक्ता फल 

चुगता मोती 
राज हंस !

रविवार, 16 सितंबर 2012

भोर हुई ....


भोर हुई 
उठो जागो 
सारे 
नील गगन में 
छुप गए 
तारे !
पूर्व दिशा में 
लाली छाई 
जीवन रस 
छलकाती उषा 
आई !
गुलशन-गुलशन 
फूल है खिले 
पंछी भी चले 
अंबर को छूने !
डाल-डाल पर 
चिड़िया फुदक 
रही है 
ठंडी-ठंडी हवा भी 
गा रही है !
पूजा घर में 
मधुर आरती बोले 
भोर हुई उठो 
जागो सारे !

बुधवार, 29 अगस्त 2012

आरोपों के कटघरे में ....


सुना है कि,
इश्वर ने मनुष्य को 
जीवन के एक प्याले में
सुख भरकर दिया और 
यह कहा कि, इसे पियो 
और खुश रहो मस्त रहो 
दुसरे प्याले में दुःख भरकर 
दिया और यह कहा कि,
इसे पियो और जानो कि,
जीवन क्या है ?
और अक्सर मनुष्य 
सुख पीते-पीते यह 
भूल जाता है कि 
इश्वर क़ी कही हुई
दूसरी बात को,
इसी कारण शायद 
आरोपों के कटघरे में 
खड़ा कर देता है 
मनुष्य उसको ...
क्या पता इसीलिए 
लापता रहता होगा वो 
सजा के डर से .......!

शनिवार, 11 अगस्त 2012

जैसे चाहूँ चित्र बनाऊँ ... ( बाल कविता )


मन है मेरा कोरा कागज 
जैसे चाहूँ चित्र बनाऊँ !

फूल-पौधे पशु-पक्षी बनाऊँ,
हरी-भरी धरती पर 
महका-महका एक 
उपवन बनाऊँ !

मन न्यारे, मानव न्यारे 
पावन धरती पर एकता का 
एक सुंदर मंदिर बनाऊँ !

हिंद हिमाचल, यमुना गंगा 
बनाऊँ शान से लहराता तिरंगा !

जननी जन्मभूमि बनाऊँ 
प्रेम अहिंसा के रंगों से 
प्यारे भारत का चित्र सजाऊँ !!

बुधवार, 1 अगस्त 2012

हाईकू रचनाएँ !


रक्षा बंधन 
है भाई बहन का 
प्यारा बंधन !

थाल सजाये 
राह देखे बहना 
भाई न आया !

भाई को देख 
भर आये नयना 
स्नेह छलका !

तिलक माथे 
कलाई पर राखी
मन भावन !

भाई तुझ-सा 
हर जनम मिले 
कामना यही !

न हो विपदा 
भाई के जीवन में 
बहना सोचे !




शुक्रवार, 6 जुलाई 2012

ऐ चाँद आसमा के...

ऐ चाँद आसमा के
जब भी तुम अपनी 
चांदनी से मिलने 
नील गगन में 
आ जाते हो 
सारा अस्तित्व जैसे 
दुधिया गंगा में 
पोर-पोर 
नहा जाता है 
चटक कर कलियाँ 
फूल बन खिल 
जाती है !
मदमस्त होकर सुरभि 
हवाओं में सौरभ 
भर देती है !
लिये पलकों पर 
स्वप्न सिंदूरी 
चाँद की बांह में 
चांदनी सुरमई 
हो जाती है !
भोर प्रात में जब 
चांदनी से बिछड़ कर 
घडी भर भी रुकते 
नहीं हो न चाँद,
तब धरती के 
पात-पात पर 
शबनम मोती-सी 
बिखर जाती है !
चांदनी के आंसू ही 
शबनम नहीं तो 
और क्या है !

शुक्रवार, 15 जून 2012

एक ऐसी पाठशाला चाहिए हमको ... ( बाल कविता )



खेल-खेल में समझाए सबको,
एक ऐसी पाठशाला चाहिए हमको 
पीठ पर भारी बस्तों का बोझ नहीं,
कभी शिक्षा मन पर भार न हो !
जहाँ ऊँच-नीच का भेद नहीं,
शिक्षा बेचने का व्यापार न हो !
मोटर-गाड़ियों का शोर नहीं,
खेलने - कूदने का मैदान हो !
कक्षा में रैंक का सिस्टम नहीं,
महत्वाकांक्षा की होड़ न हो !
परीक्षाएँ चरित्र की पहचान नहीं,
खेल-खेल में समझाएँ सबको !
एक ऐसी पाठशाला चाहिए हमको !!

सोमवार, 21 मई 2012

तितली रानी ......


तितली रानी, तितली रानी
कभी इस डाल पर, कभी उस डाल पर
कभी इस फूल पर, कभी उस फूल पर
उड़ती फिरती हो तुम फुलरानी !
हाथ लगाऊँ तो, पंख फट जाते है
डोर बांधु तो, पाँव टूट जाते है
नाजुक कितनी हो तुम शर्मीली !
दूर घर से तुम कब निकलती हो
कितने सारे रंग तुम बदलती हो
पल-पल छलती हो, तुम जादूगरनी !
तुम आती हो तो, फूल खिलते है
तुम आती हो तो, हम खुश होते है
सब के मन को मोहती हो, 
तुम मनमोहिनी....
तितली रानी, तितली रानी
उडती फिरती हो तुम फुलरानी !

सोमवार, 30 अप्रैल 2012

हैप्पी वैकेशन ........ { बाल कविता }


चिंताएँ सारी दूर हुई,
परीक्षाएँ भी समाप्त हुई 
पढ़-पढ़ कर इतना बोर हुई 
सिर-दर्द हुआ एजुकेशन 
कल से है हैप्पी वैकेशन !

किताबों ने दिमाग खाया 
टीचरों ने भी जान खायी 
भारी बस्तों से कमर झुकी 
विदा करेंगे सारा टेन्शन 
कल से है हैप्पी वैकेशन !

साथी-सहेलियों के गले मिलेंगे 
गिले-शिकवे सब दूर करेंगे 
आँखे थोड़ी-सी नम करेंगे 
मिल-जुलकर करेंगे सेलिब्रेशन 
कल से है हैप्पी वैकेशन !

तभी टीचर ने कहा अटेंशन 
बच्चों खाओ, खेलो मौज करो 
नाचों,  गाओ या सैर करो 
ढेर सारा होमवर्क देते हुये कहा ....
छुट्टियों में होमवर्क कंप्लीट करो !! 

बुधवार, 11 अप्रैल 2012

भाव असीम है आकाश की तरह ...


जीवन के कुछ महत्वपूर्ण
बातों को समझने और 
समझाने से पहले उस 
विषय जानकारी की 
विशिष्ट योग्यता का होना 
अनिवार्य शर्त है !
इसके अभाव में जो कुछ 
कहना चाहा था अनकहा 
रह जाता है !
जो नहीं कहना चाहा था 
और मुखर हो जाता है 
शायद इसीलिए .... 
उन शब्दों के अर्थ कम 
अनर्थ ज्यादा निकाले जाते है !
जब कोई एक चित्रकार 
कोरे कागज पर,
आकाश का चित्र बनाये 
निश्चित ही वह आकाश 
आकाश नहीं होता 
आकाश तो वह होता है 
जो सब जगह घेर लेता है 
किन्तु चित्र में आकाश 
कहाँ घेर पाता है सब कुछ 
चित्रित आकाश सिमित है !
ऐसे ही कागज पर लिखे 
हुये शब्द भाव कहाँ घेर 
पाते है तभी शब्द सिमित 
और भाव असीम है 
आकाश की तरह !

शनिवार, 24 मार्च 2012

जग के कोलाहल से दूर .........


सुबह से शाम 
चलते-चलते
जब मन
थक जाता है
जग की राहों पर,
सुबह से शाम 
कहते सुनते
उब जाता है
जब मन 
जग की बातों से,
बोझ से शब्द जब
भारी-भारी से 
लगने लगते है
सर चकराने लगता है
तब-तब
जग के कोलाहल से
दूर ....
शब्द,संवादों के
पार
अंतर्लीन हो कर
मौन के गहरे
अतल में डूब जाना
ऐसे  ही लगता है 
जैसे ....
दिन भर का 
थका-हारा कोई 
छोटा सा बच्चा
अपनी माँ की 
गोद में आकर 
चुप-चाप सो जाता है
 सुकून से !
 

रविवार, 4 मार्च 2012

गोकुल में कान्हा खेले रंग .........


मौज,मस्ती,रंग,तरंग और हुडदंग लिये होली हर साल की तरह हमारे द्वार पर दस्तक दे रही है ! ठंडी-ठंडी हवावों की सिहरन सूरज की तेज होती किरणों से बौखलाकर बर्फीले पहाड़ों के आँचल में छुपने का प्रयास कर रही है ! बाग़,बगीचों में कोयल की मीठी कुहू-कुहू सुनाई देने लगी है ! आम्र वृक्षों पर बौराई मंजरियाँ अनोखी सुगंध हवावों में भर रही है ! दूर-दूर तक सरसों की, पके हुये गेहूं की लहलहाती खेतियाँ मानों किसानों को कह रही है ...हमें काटकर बिन कर धन, धान्य से अपनी भंडारे भर लो ! बदलते मौसम के साथ बदलते रंगों के साथ चारों ओर नव जीवन का नव विकास दिखाई दे रहा है ! जाड़े की विदाई और ग्रीष्म का आगमन, नर्म-गर्म मौसम में रंगों का यह त्यौहार, बच्चे,बड़े सबके मन को भाने लगा है ! बच्चों की टोलियाँ हाथों में रंगों से भरी पिचकारियाँ लिये सड़कों पर निकल आई है ! किसी के हाथ में रंग तो किसी के हाथ में अबीर-गुलाल, कोई शरारती प्रियतम अपनी प्रेयसी को रंगों से भिगोने अपने पीठ पीछे हाथ में रंग छिपाए मुस्कुराने लगा है ! तभी तो गोकुल में अपने बाल-सखाओं के साथ कृष्ण निकल पड़े है रंग बरसाने .........राधा और उसकी सखियों के साथ रंग खेलने .........!!

रंग बसंती बहार आयी,
खुशियों की फुहार लायी !
   होली के रंगों में !!
   गोपियों के संग 
गोकुल में कान्हा खेले रंग 
सखी कैसे जाओगी घर  !!
 झंन -झन झाँजर बाजे 
अबीर गुलाल के थाल सजे 
  रंगों का त्यौहार आया 
  खुशियाँ अपार लाया !!
    बाँसुरी की धुन में,
    गोपालों के संग,
गोकुल में कान्हा खेले रंग 
सखी कैसे जाओगी घर !!
भर-भर पिचकारी से रंग छलका 
हास-परिहास का सौरभ बिखरा 
     रंग उड़े, गुलाल उड़े,
   मोहिनी सूरत चित्तचोर,
     हाथ रोक रंग डाले,
  भीगी चोली, भीगी चुनरी,
राधा रानी कैसे जाओगी घर 
गोकुल में कान्हा खेले रंग !!

शुक्रवार, 2 मार्च 2012

चाहता है मन ........


चाहता है मन 
फिके न हो यह 
जीवन के इन्द्रधनुषी 
रंग कभी भी,
देते रहे सदा
चटक,गहरे पन
 का अहसास 
किन्तु कहाँ ऐसा 
संभव होता है 
प्रकृति से संघर्ष 
मन का व्यर्थ हो 
जाता है !
जो रंग कल थे 
आज कहाँ ?
आज के कल 
कहाँ ठहरेंगे 
हर बसंत के बाद 
पतझर आता है 
कल रो-रो कर 
कहा किसी ने 
दिल न लगाना 
किसीसे भी 
प्रित के रंग भी 
अक्सर समय के
साथ फिके हो 
जाते है !

सोमवार, 20 फ़रवरी 2012

ख्याल कभी मेरे .......


ख्याल कभी मेरे ...
हो मौन कभी मुखर
चेतना से इंधन
डलवा कर ...
चमचमाती, कीमती 
मोटर, गाड़ियों की तरह 
राज पथ पर (हाई वे)
दौड़ते है, कभी खुद 
पगडंडी बन किसी गाँव 
क़स्बे में पहुँच जाते !
कभी फूल- से नाजुक 
तितलियों से चंचल 
फूल-फूल पर मंडरा कर 
पंख अपने रंग लेते !
कभी सूरज के प्रखर 
ताप से पिघल कर 
बाष्प बन हृदयाकाश में 
भाव की बदली बन 
छा जाते, बरस जाते 
 मन के आंगन में,
अनायास ही
गीत स्वयं बन जाते 
ख्याल मेरे कभी  ........!!

सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

माँ कौन देश से आते है सपने ? ( बालकविता )


 माँ....
कौन देश से 
आते है सपने 
कौन देश चल 
देते है सपने !
सबके मन को 
भाते सपने 
मीठी नींद में 
आते सपने !
कभी चाँद-तारों की 
सैर कराते, कभी 
परियों के देश 
लिये जाते !
कभी बीते दिनों की 
खबर सुनाते, कभी
आते दिनों की 
आहट देते !
यहाँ-वहाँ पल में 
पहुंचाते सपने 
माँ ....कौन देश से 
आते है सपने ?
हंसाते- सपने 
डराते-सपने 
रुलाते सपने 
विस्मय-विमुग्ध 
मन को कर जाते 
सपने !

रविवार, 15 जनवरी 2012

चिड़िया का लक्ष्य ........


एक दिन एक चिड़िया ने 
आकाश में मंडराते-मंडराते 
दूर चमकते शुभ्र बादल को देखा 
और मन ही मन सोचा क़ि,
क्यों न मै उड़कर
उस शुभ्र बादल को छू लूँ 
उसने बादल को छूने का 
लक्ष्य बनाया 
पूरी ताकत से उस दिशा में 
उड़ने लगी चिड़िया  
किन्तु चमकता शुभ्र बादल 
एक जगह स्थिर नहीं 
रह पाता 
कभी पूरब तो कभी पश्चिम 
दिशा में चला जाता 
और कभी गोल-गोल 
चक्कर लगाता 
अथक प्रयासों के बाद 
जब चिड़िया बादल तक 
पहुँच पायी, अचानक 
बादल छंटने लगा 
चिड़िया क़ी पहुँच से 
ओझल हो गया 
यह देख कर चिड़िया ने 
कहा .....
मै भी कितनी पागल हूँ 
इस क्षणभंगुर बादल 
को नहीं, लक्ष्य तो बस 
उन पर्वत क़ी गर्वीली 
चोटियों को ही,
बनाना चाहिए ...........

शनिवार, 7 जनवरी 2012

सरदी आयी सरदी आयी ...... (बालकविता)


कुहरे में ठिठुरती भोर चिल्लाई
सरदी आयी सरदी आयी 
बदला मौसम बदली चाल 
सरदी ने किया बुरा हाल !

रजनी चाची देर तक सोई 
सूरज चाचा देर से जागा 
बहकी लहकी बोले पुरवाई 
सरदी आयी सरदी आयी !

खिली कलियाँ पंछी चहके 
मचल-मचल जंगल महके 
थरथर-थरथर देह कांपे
बंद करो सब खिड़की दरवाजे !

दुबक के दुशाले में दादी बोली 
कैसे गजब की सरदी आयी 
सिमट के बिस्तर में पापा बोले 
जल्दी लाओ गर्म चाय की प्याली !

ठंडी-ठंडी सर्द हवायें
मम्मी जगाये सुबह-सवेरे 
बजी घंटी आठ बजे 
स्कूल को देर हो न पाये !