रविवार, 18 अप्रैल 2010

छंद रचने के क्षण

रात के क्षण
सुबह से शाम
भागते दौड़ते
थक गया तन
जग की राहे
सुबह से शाम
कहते सुनते
उब गया मन
जग से बाते
छाया तम है
गहरा
निर्जन रात
एकांत चारो और
रजनी का पहरा
उद्वेलित श्वास
मन उदास
आंखे नम है
क्यों उमड़ने
लगी आज फिर से
भग्न अंतर की
निराशा
छंद रचने के क्षण !

मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

हाईटेक हुए है बाबाजी

ऐसा कोई दिन नहीं है
ऐसी कोई रात नहीं
जहाँ नित नए किस्से
दिलचस्प घटनाये
न हो ऐसा कोई
शहर नहीं है
साधू संत ग्यानी
आजकल हर टी .वी
चैनलों पर छाए है
हाईटेक हुए है
बाबाजी!
ये है सब सत्ता के
उपासक
कनक कामिनी के
पुजारी!
इनका काम है
पाखंड रचकर छलना
जग को इनके नाम अनेक
पर लक्ष एक
सत्ता , रुपया, शासन
सुनो कुछ गुनो तो
क्या कहता है
शास्त्र पूरान
कण -कण में भगवान
फिर इनको है
क्या काम !
आजकल दुनिया में
येही तो हो रहा है
उनमे इनमे कोई
भेद नहीं है
एक जैसी कूटनीति
एक सा योप्आर
फल फुल रहा है
बड़ा सूक्ष्म भेद है
दोनों में
वे करते है
देश के नाम
ये करते है
भगवान के !