शुक्रवार, 6 जुलाई 2012

ऐ चाँद आसमा के...

ऐ चाँद आसमा के
जब भी तुम अपनी 
चांदनी से मिलने 
नील गगन में 
आ जाते हो 
सारा अस्तित्व जैसे 
दुधिया गंगा में 
पोर-पोर 
नहा जाता है 
चटक कर कलियाँ 
फूल बन खिल 
जाती है !
मदमस्त होकर सुरभि 
हवाओं में सौरभ 
भर देती है !
लिये पलकों पर 
स्वप्न सिंदूरी 
चाँद की बांह में 
चांदनी सुरमई 
हो जाती है !
भोर प्रात में जब 
चांदनी से बिछड़ कर 
घडी भर भी रुकते 
नहीं हो न चाँद,
तब धरती के 
पात-पात पर 
शबनम मोती-सी 
बिखर जाती है !
चांदनी के आंसू ही 
शबनम नहीं तो 
और क्या है !