गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

अभिलाषा


सुमन 
सुबह-सुबह 
काँटों में खिला 
साँझ मुरझा
गया !
जाते - जाते 
जीवन कहानी 
दोहरा गया !
हर बीज में 
छुपी हुई है 
फूल होने की 
अभिलाषा !
हर फूल में 
बीज होने की,
देखना कल 
फिर- फिर 
खिलेगा !
चाहे किसीका 
मित बिछुड़े 
चाहे किसीका 
प्यार लूटे
नए-नए अरमान लिए  
मन सपना 
फिर - फिर  
बूनेगा !

शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

मेरा घर ......... (बालकविता)



आइये कभी,
ये है हमारा छोटा, प्यारा घर 
"स्वीट होम " लिखा है दरवाजे 
पर !
इधर फाइलों में उलझे है पापा 
कोर्ट - कचहरी का उनका पेशा,
बिज़ी रहते है हमेशा !
उधर, किचन में हलवा बना 
रही है मम्मी 
प्यार में उसके नहीं है कोई 
कमी !
उस स्टडी रूम में भैय्या है पढता 
केरियर की उसको खाती 
चिंता !
कभी - कभार ही मुझसे है मिल 
पाता !
दूर कोने में मै, अकेली उदास 
तभी कविता मेरे आती है पास 
मन की सारी बात वह जान 
जाती है 
चुपके - से कान में, मेरे कुछ 
कह जाती है !

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

नेह निमंत्रण ...........


सच में मैंने,
कभी न चाहा था!
तुमको अपने 
ह्रदय का हाल 
सुनाऊं !
मेरे सुख-दुःख में,
तुमको अपना 
साझीदार 
बनाऊं !
उन भोले-भाले
नयनोंमे, 
दर्द का सावन 
भर दूँ !
वह तो तुम्हारे 
नेह निमंत्रण ने,
अनायास मेरे 
दिल का दर्द 
पिघल कर 
शब्दों में,
बह आया है !

शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011

ढाई अक्षर प्रेम के .....


प्रेमग्रन्थ 
जितने भी लिख डालो 
प्रेमग्रंथ !
प्रेम का स्वाद कुछ 
समझ न आता 
दिल 
प्यासा का प्यासा !

   (२)

ऐ मुहब्बत 
दिल में ही, रहो 
कैद !
अच्छा नहीं लगता 
यहाँ-वहां झांकना 
तुम्हारा !

 (३)

बुद्धिवादी युग में,
निरंतर विचार,शब्द,ध्वनि 
के आघात से,
सिर्फ शब्दकोष में,
रह गई है 
शांति !