बुधवार, 29 दिसंबर 2010

नए वर्ष का नया दिन !

दिन जो की,
कल भी वही था
आज भी वही है
नए वर्ष का नया दिन
खुद को बहलाने की
अच्छी तरकीब है !
जो कल भी आई थी
वही तो सुबह है
हाथ में फीकी चाय की प्याली
साथ में अख़बार और अख़बार में
वही बासी खबरे है !
भ्रष्टाचार,कालाबाजारी,
सब गड़बड़ घोटाले है
भ्रष्ट अफसर बेईमान नेताओंके
काले चिठे कारनामे है
नए साल में नया क्या है ?
पिछले साल भी
अधिक थी महंगाई
अब की बार और जादा है
आम आदमी को
प्याज कल भी रुलाता था
आज भी रुला रहा है
दुखों की फेहरिस्त लम्बी है दोस्तों
टूटे-टूटे सब सपने है
बुझी-बुझी आशाये है
जिसके भी दरवाजे जाओ
कोई गमगीन मिला
कोई बदहाल हुआ
यहाँ मरने के है लाख बहाने
पर जीने की कोई वजह
नहीं है !


(फेसबुक के सभी प्रशंसक ,सभी ब्लॉगर मित्रों को,
नए वर्ष की अनेक शुभकामनाये ! )

सोमवार, 13 दिसंबर 2010

आयी भोर ....

पेड़- पौधे जागे
पंछियों के मीठे
गीत जागे
खिली कलियाँ
फूल महके
कलि कुसुमों पर
भौरे इतराए!
नये स्वप्न नई आशा
आलस त्यागकर,
जागी उषा
अब तो जागो मन!
श्वेत परिधान पहनकर ,
स्वागत करने
बड़े सवेरे आयी भोर ....!!

गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

तुम मेरी कविता हो




जो अब तक कह न पायी
कभी, आज कह रही हूँ
मेरी प्यारी बिटिया ,
उस दिन अस्पताल के
लेबर रूम में,
नन्ही-सी, प्यारी-सी,
फूल सी कोमल, टावल में
लिपटी, नर्स के हाथ में
देख कर तुझको पल भर
भूल गयी मैं अपने आप को,
भूल गयी थोड़ी देर पहले की
वह प्रसव वेदना !
तुम क्या आई थी मेरे घर
जैसे बहार आ गयी थी,
तेरी मीठी किलकारियों से
महक-महक गयी मेरी
जीवन फुलवारी !
जिस दिन पहली बार तुमने
मुझे माँ कहकर पुकारा
ख़ुशी से मेरा रोम-रोम
हुआ रोमांचित,
तुम्हे पा-कर धन्य हुयी मैं
मातृत्व मेरा !
तुम्हारे लाड-प्यार में नटखट
बाल क्रीडाओं में खो सी गयी थी मैं ,
समय कब कैसे पंख लगाकर उड़ गया
पता ही न चला !
आज तुम्हारा १९ वा जन्म दिन है
बधाई हो !
सभी मेहमान आये हैं तुम्हे
बधाई देने को !
कोई कहता है तुम अपने
पापा पर गयी हो कोई कहता है
तुम मेरी ही प्रतिछाया हो
कोई कितना भी कहे मैं तो
अपनी ही कहूँगी
मेरी प्यारी गुडिया
छाया का कोई अस्तित्व नहीं होता
वह तो धुंदली होती है
काली होती है !
तुम तो हुबहूब मेरा ही
प्रतिबिम्ब हो
या की जीवन पाटी पर
लिखी हुई जीती-जागती जीवंत
कविता हो तुम मेरी !








( कन्या भ्रूण हत्या अक्षम्य
अपराध है! अपनी बेटियों को
बचाओ ! पाल-पोस कर खूब
पढाओ लिखाओ ! बेटियाँ घर की
शान है ! देश का गौरव है ! )

शनिवार, 27 नवंबर 2010

भाव सुमन

सुरमई हुआ विशाल अम्बर
तम को हरने आया भास्कर
सजी धजी धरती सुंदर
देती सबको प्रेम निरंतर
ओस बिखरी मोती बनकर
फूल खिले तरु-तरु पर
कोयल गाती गीत मनोहर
खग गण डोलती सुर-तालपर
मंद बहती नदियाँ ,निर्झर
समीर भागे गिरिशिखरोंपर
रुके न यहाँ वहाँ पलभर
पथिक खड़ा हो कोई तटपर
तृषा हरने नील सरोवर
बहर के आया है गुलमोहर
मन्त्रमुग्धता छाई मनपर
जब मन में हो श्रद्दा प्रभुपर
कण-कण में होते उसके दर्शन
तब प्रभु चरणों में झर जाते है
यह भाव सुमन !

गुरुवार, 4 नवंबर 2010

आई है दीवाली !

रुनझुन-रुनझुन
ज्योति की पायल
बजी जागी प्रभात
जैसे नभ में छिड़की
कुंकुंम लाली
जगमग-जगमग
आई है दीवाली!
फूल-सी महके
जीवन फुलवारी
आँगन-आंगन
सजी रंगोली
बंधी तोरण द्वार -द्वार
फूल मालाओंकी
झालर न्यारी
मनभावन अल्पना
प्रांगण सुचित्रित कर
सुख बन सुषमा बन
घर-घर छायी
आई है दीवाली!
तम की विकट
निशा बीती
चिर सत्य की
विजय हुई
श्री रामचंद्र की
हुई जय जयकार
दिग-दिगंत के
छोर तक गूंजी
जयभेरी
दीप जले खुशियों के
जगमग -जगमग
अलोक वृष्टि
चहुओर हुयी
आई है दिवाली !

शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

मुहब्बत की चांदनी खिली है

आज न चलेगा
तुम्हारा
कोई बहाना
जैसे भी हो
आओ छतपर
देखो
शरद चांदनी खिली है
रात है नशीली
चांदनी
आज मन भी
है नशीला
तुमसे कहने को
बात है
कुछ ख़ास
तनिक बैठो
पास !
कुछ कह लेने दो
कुछ सुन लेने दो
धडकनों को
आपस की बात
आओ
चांदनी ओढ़े
बिछाए चांदनी
हम तुम
आकंठ पिये
अंजुली भर-भर कर
मुहब्बत की चांदनी
खिली है !

मंगलवार, 14 सितंबर 2010

मेरे भी घर आओ गणपति (बालकविता )

गणेश चतुर्थी जब-जब आती !
पढाई से हमको छुट्टी मिलती !!


इंतजार हम पल-पल करते
वर्ष में क्यों आप एक बार आते !!

काश आपकी भी होती कार
चूहे पर क्यों होते सवार ?

गांव -गांव में, शहर-शहर में !
गली-गली में, घर-घर में !!

बरसो से आप आते - जाते !
प्रेम की खातिर मोदक खाते !!

बारहों महीने पानी में नहाते
क्या बोर नहीं हो जाते ?

एक बार मेरे भी घर आओ !
ज्ञान की जोती जलाकर जाओ !!

मेरी भी पुकार कुछ सुनना !
यही है मेरी गणेश जी प्रार्थना !!

शनिवार, 28 अगस्त 2010

शत-शत दीप जलने दो

छलक-छलक आते है ये आंसू
बिन बादल बरस जाते है ये आंसू!
इन बहते आंसुओं को मत रोको
इन्हें बहने दो!
इन आसूओं के खारेपन से
जीवन के अनंत दुःख धुल जाने दो !
खूब खिलते उद्यान महकाते
इन खिलती ह्रदय कलियों को
मत तोड़ो
इन्हें खिलने दो !
इन खिलते फूलों की खुशबु से
जीवन की फुलवारी
सदा महकने दो !
केवल शब्द नहीं है ये
भाव है मन के
इन भावों को सीमा में मत बांधो
इन्हें मुक्त आकाश में उड़ने दो !
इन भावों के मनमंदिर में
शत-शत दीप जलने दो !

मंगलवार, 10 अगस्त 2010

गीत मेरा अधुरा

अभी गीत मेरा अधुरा-अधुरा,
आज मन बेकाबू होने लगा है!
पंछी बन नभ में उड़ने लगा है!
पवन कलियों को गीत सुनाने लगा है!
ओ झुमझुम कर नाचती बसंती बहारों,
मधुर कंठी कोयल कोई गीत गाओ!
नींद से मुझे अभी तुम न जगाना ,
अभी स्वप्न मेरा अधुरा-अधुरा !
जीवन को साधना भक्ति बना लूँ,
प्रभु प्रेम को मै पूजा बना लूँ !
भाव दीपों को आरती में सजा लूँ,
हे अश्रु सुमनों प्रिय पथ सजाओं !
बिखरे सुर ताल सितार पर संवारो ,
कभी द्वार आकर न तुम लौट जाना!
अभी गीत मेरा अधुरा-अधुरा !!

बुधवार, 4 अगस्त 2010

किस चित्रकार ने रंग भरे है

सुबह की सिंदूरी लाली में,
सूरज की सुनहरी किरणों में,
ओस बिखरी हरियाली में,
किस चित्रकार की तुलिका ने,
रंग भरे है इनमे मोहक !
और मै अपने घर आंगन की,
रंगोली में रंग भरती रही जीवनभर !
हवावों की सायं -सायं में ,
पायल -सी खनकती पत्तियोंमे ,
बारिश की रिमझिम बरसातों में,
किस गायक के सुरों ने,
स्वर भरे इनमे अद्भुत !
और में अपने मन वीणा के तारों में ही,
उलझी रही जीवनभर !
पूनम की मदभरी रातों में,
चन्द्र वदना यामिनी को
सागर की लहरों पर,
किस कवी की कलम ने
कविता लिख भेजी मनोहर !
और मै अपनी आधी -अधूरी
कविताओं पर मुग्ध होती रही जीवनभर!!

मंगलवार, 13 जुलाई 2010

हर फूल दुसरेसे अलग है (बालकविता )

क्यों देतो हो उपदेश
ऐसे बनो वैसे बनो
नक़ल करने पर देते हो सजा
फिर क्यों कहते हो
बनो उसके जैसा
पूछो मलीसे,
उसके बाग़ के,
फूल न्यारे खुशबु न्यारी
क्या जूही क्या मोगरा
फिर भी उसको कितना प्यारा
हम भी ,
तुम्हारे बाग़ के फूल है
हर फूल दुसरे से अलग है
देना स्नेह का खाद पानी
फिर, हम अपना फूल खिलायेंगे
सारी दुनिया में हम अपनी
खुशबु सारी बिखरायेंगे!

मंगलवार, 22 जून 2010

नानी के गावं है जाना (बालकविता)

ना कुछ सीखना
ना सम्मर केम्प में जाना
मुझे तो छुट्टियों में
नानी के गावं है जाना !
जहां कल-कल नदी एक बहती
मधुर नाद सुनाती रहती
गीली रेत पर नंगे पैर चलना
ढेर सारी सीपियाँ बटोरना
शीतल स्पर्श वह पानी का
पैरों को गुदगुदाना मछलियों का
आटे की गोलियां बनाबाना कर
उनकों है खिलाना
मुझे तो नानी के गावं है जाना !
हरी भरी जहाँ वनराई
और वनराई में गूंजता है जब चरवाहे के
बंसी का स्वर
नाच उठता मन का मोर
आमों की आमराई ओर
ममता की छावं
भोले भाले लोग
प्यारा प्यारा गावं
डफली की ताल पर
लोक गीत है सुनना
मुझे तो नानी के गावं है जाना !

कागज़ की नाव (बालकविता )

डगमग डोले डगमग डोले
पानी ऊपर नाव रे
सखी सहेली आवो देखो
कागज़ की ये नाव रे !
पानी बरसा तनमन हर्षा
खुशियों का इन्द्रधनुष खिला
तट के उस पार लिए चली
सुंदर सपनोंका संसार रे
कागज़ की ये नाव रे !
तुफानोंसे ना ये घबराएँ
लहरों पर इतराती जाए
बिना मोल की विहार कराये
देखों कैसी इसकी शान रे
कागज़ की ये नाव रे !
गीत मेरे सुर तुम्हारे
भोला बचपन लौट न आये
आओ सब मिलजुलकर गाये
नाचो देकर ताल रे
डगमग डोले- डगमग डोले
पानी ऊपर नाव रे
कागज ये नाव रे !

सोमवार, 14 जून 2010

मेरी माँ

सबको अपनी -अपनी माँ प्यारी होती है
मुझको अपनी माँ सबसे प्यारी लगती है
सरल सुंदर मन की मधु मिश्री -सी मीठी,
माँ प्रेम और ममता की सरिता लगती है!
मेरी हर उलझन को चुटकी में सुलझाती,
घर को सजाकर कैसे सुंदर स्वर्ग बनाती,
माँ कभी पहेली तो कभी सहेली लगती है !
मेरी ख़ुशी में वह खुशीसे खिल जाती,
दुःख में मेरे फूल -सी मुरझाती,
माँ आँगन की फुलवारी लगती है !
कमजोर होता है जब मन लडखडाते है कदम,
अपने विश्वास भरे हाथों से थाम,
माँ कोई अनजानी प्रेरणा लगती है !
सुघड़ हाथो से तराश -तराश कर शिल्प बनाती ,
माँ है विश्वास,माँ है प्रेरणा ,माँ सर्वश्रेष्ट
भगवान की अनुपम भेट लगती है !

मंगलवार, 8 जून 2010

चंदामामा की शादी है

चंदामामा की शादी है
उजली पोशाकों में,
तारे सजे बाराती है
ढोल नगाड़े बाजे बजते है
झुमझुम कर ताल पर बाराती
सब नाचते है
आतिश अनारों के साथ
जब फुलझड़ियाँ छुटती है
झिलमिल रौशनिसे
धरती आकाश नहाते है
सजधज कर युवतियां जब
मटक-मटक कर चलती है
अनब्याहे यूवावों के दिल
धड़क -धड़क जाते है
पूनम की रात है मेहमानोंका
स्वागत है!
दुल्हन के घरवाले
दुल्हे वलोंकों
चांदी की सुराई से
चांदी के प्यालों में भरभर कर
शरबत पिलाते है
बादल कहार गगन की डोली
सितारों जड़े घूँघट में
दुल्हन शरमाई
मंगल धुन बजी शहनाई
चंदामामा की शादी की
शुभ घडी है आई !

रविवार, 18 अप्रैल 2010

छंद रचने के क्षण

रात के क्षण
सुबह से शाम
भागते दौड़ते
थक गया तन
जग की राहे
सुबह से शाम
कहते सुनते
उब गया मन
जग से बाते
छाया तम है
गहरा
निर्जन रात
एकांत चारो और
रजनी का पहरा
उद्वेलित श्वास
मन उदास
आंखे नम है
क्यों उमड़ने
लगी आज फिर से
भग्न अंतर की
निराशा
छंद रचने के क्षण !

मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

हाईटेक हुए है बाबाजी

ऐसा कोई दिन नहीं है
ऐसी कोई रात नहीं
जहाँ नित नए किस्से
दिलचस्प घटनाये
न हो ऐसा कोई
शहर नहीं है
साधू संत ग्यानी
आजकल हर टी .वी
चैनलों पर छाए है
हाईटेक हुए है
बाबाजी!
ये है सब सत्ता के
उपासक
कनक कामिनी के
पुजारी!
इनका काम है
पाखंड रचकर छलना
जग को इनके नाम अनेक
पर लक्ष एक
सत्ता , रुपया, शासन
सुनो कुछ गुनो तो
क्या कहता है
शास्त्र पूरान
कण -कण में भगवान
फिर इनको है
क्या काम !
आजकल दुनिया में
येही तो हो रहा है
उनमे इनमे कोई
भेद नहीं है
एक जैसी कूटनीति
एक सा योप्आर
फल फुल रहा है
बड़ा सूक्ष्म भेद है
दोनों में
वे करते है
देश के नाम
ये करते है
भगवान के !