रविवार, 24 अगस्त 2014

कविता तुम ...

कहाँ रहती हो 
कविता तुम 
कभी तनहाई में 
बुलाने पर भी 
नहीं आती,
कभी बिन बुलाये 
आ जाती हो 
भावों के नुपुर 
पहन कर,
छमा-छम छमछम 
बरस जाती हो 
मेरे आँगन में 
झमा-झम झमझम
बारिश की तरह !
स्वाद तृप्ति का 
दे चातक मन 
तृप्त कर देती हो 
कविता तुम   .... !