रविवार, 13 दिसंबर 2009

एक कविता को छोड़कर

हमने जीवन को
कब समझा कब जाना
यूह्नी जीवन को वेर्थ गवांया
किंतु जीते -जीते
एक दिन पता चला
जिसको हमने जीवन समझा
वह जीवन नही
मृत्यु के द्वार पर
खड़ी हुई मनुष्य की
लम्बी कतारे है
कोई अब गया कोई
कल कोई परसों जाएगा
देर सवेर की बात है
खोजने पर भी उनके
नही मिलेंगे निशान
जैसे पानी पर खींची
गई हो लकीरे
बन भी नही पाती
की मिट जाती है
ऐसे ही पल में सब कुछ
मिटा देती है मृत्यु
एक कविता को छोड़कर!

सोमवार, 7 दिसंबर 2009

पलछिन

रुतु ने करवट बदली
मौसम हुवा रंगीला
सरसर -सरसर बहती
ठंडी चले पुरवा
कंपकपाती सर्द हवा
शीतल सब गात
धरती के आगोश में
ऊँघ रही है रात
उलझी-उलझी अलके
अलसाये नयन
उस पर याद
तुम्हारी आयी
भटक गया पलभर
न जाने कहाँ ये
स्वप्न पंखी मन
पलकों पर ठहर गया
कोई अंजाना स्वप्न
मानो ठिटक पल में छीन गया !

बुधवार, 7 अक्तूबर 2009

आई दिवाली

उमंग उल्लास है मन पर छाया
जगमग -जगमग दीपों का त्यौहार
आया !
मन्मन्दिर में झिलमिल दीप जलाओ,
दीपावली का पावनपर्व मनाओ !
पटाखे फुलझडीयां बहुत ना जलाओ,
पर्यावरण को दूषित होनेसे बचाओ!
रोज शहरोंमे प्रदुषण बढ़ रहा है,
अनेक बिमारियोंसे मानव लड़ रहा है!
मेहनत की कमाई, पॉवर है मनी
बारूद में उडाकर क्यों करे मनमानी !
शान आडम्बर का वेर्थ है ,दिखावा
जीवन है अनमोल सादगीभरा !
हर तीज त्यौहार पर मिठाई मेवा .........
किसी के घर में मुश्किल से जलता
चूल्हा !
हर मौज मस्ती में
जगमग उजियारा
किसी घरमें
दुःख दर्द है अँधियारा !
घर -घर में प्रेम के दीप जलाओ,
सुमन का यह शुभ संदेश पहुँचाओ !!
आई दीवाली जगमग दीप जलाओ !!

बुधवार, 30 सितंबर 2009

प्रेम के दीप जलाओ

उमंग उल्लास आज मनपर है छाया
जगमग -जगमग दीपो का त्यौहार आया !
शरद के आगमन का यह जादू सारा
नववधू सी सज गई सारी वसुन्दरा!
अम्बर पर, धवल जोत्स्ना बिखर रही है
हरियाली पर ओस की बुँदे मोतीसी चमक रही है !
उध्यानोमे पराग भरे पुष्प खिलखिला रहे है
शाख -शाख पर चिडिया फुदक रही है !
वर्षा में उफनती सरीता, अब धीर मंथर बह रही है
कमल पंखुडियों पर भ्रमर गुनगुना रहे है !
आज प्रकृतिका जैसे हरदय खिल गया दूना
खुशियों से महक रहा है घर आँगन का कोना !
घर-घर में प्रेम के दीप जलाओ
दीपावली का पवन पर्व मनाओ !

मंगलवार, 22 सितंबर 2009

मृत्यु

हर पल मरकर जीती हूँ
मै मृत्यु से बहुत डरती हूँ
रोज निहारती हूँ दर्पन में ख़ुद को,
चेहरे की झुरियों को, पकते केशों को,
आँखों के नीचे काले पड़ते वर्तुलों को
और सोचती हूँ
अभी-अभी तो खिला था
जीवन का बसंत
नही, अभी न हो मेरा अंत
मै जीवन संध्या से घबराती हूँ
यहाँ हर रोज कही किसी सड़क पर
देखती हूँ दुर्घटना से क्षत विक्षित
लाशो को , अस्पताल में दम तोड़ते
प्रिअजनो को चिता पर जलते
बचती हूँ इन प्रश्नों से
क्या है जीवन? क्या है मृत्यु ?
वो रातों के सन्नाटे में
भरी दोपहर के उजाले में,
हर पल हर मोड़ पर खडे
होटों पर कुटिल मुस्कान लिए मुझसे
नजरे मिलाने का दुस्साहस करती है
मै नजरे चुराने की कोशिश करती हूँ !

बुधवार, 16 सितंबर 2009

छुईमुई मेरे आंगन में

छुई मुई मेरे आंगन में
साँझ ढलते ही
मुरझाती है
सुबह होते ही
खिल जाती है
हरे भरे परिधान में
छुईमुई मेरे आंगन में
नाजुक सा तन बदन
सुमन सी सुकुमारी
मृदु स्पर्श मात्र से
सिमट-सिमट कर
रह जाती
आते -जाते सबके
पुलक जगाती तन मन में
छुईमुई मेरे आंगन में
उसके निकट बैठू तो
आती है मुझको
उससे चंपा सी गंध
पत्ते -पत्ते पर
लिख लाती है
नित नवे छंद
गुलाब भी झूमता है
मेहँदी के गीत में
छुई- मुई मेरे आंगन में!

सोमवार, 20 जुलाई 2009

मेरा घर

आइये,
ये है हमारा छोटा घर
स्वीट होम, लिखा है दरवाजे
पर !
इधर फाइल में उलझे है पापा
कोर्ट कचेरी का इनका पेशा
बीजी रहते है हमेशा !
उधर किचन में हलवा बना
रही है मम्मी,
पयार में उसके नही कोई
कमी !
उस स्टडी रूम में भय्या है पढ़ता
करियेर की खाती उसको
चिंता!
कभी कभार ही मुझको है मिल
पात!
दूर कोने में मई , आकेली उदास
तभी कविता मेरी आती है पास
मन की सारी बात वहा जान
जाती है
चुपके से कान में कुछ
कह जाती है !

छा गए बादल

घिर -घिर कर
आ गए बादल
नील गगन में
काले -काले
छा गए बदल !
सर्द हुए हवा के झोंके
कडाद नभ में
बिजली चमके
तप्त धरा की
प्यास बुझाकर
नदियोमे जल भरने
आ गए बादल
छा गए बादल !
वन उपवन में अब
होंगी हरियाली
शुक, पिकी मैनाये
नाच उठेगी
खेत खालिहानोमे
खुशहाली होंगी
गाव -गाव सहर
अमृत जल बरसाने
आ गए बादल
छा गए बादल !
हर्ष -हर्ष कर वर्षा
कुछ ऐसे बरसी
चातक मन तृप्त हुवा
बूंद स्वाती की मोती बनी
मन के आँगन में
छमा छम छम छम
बूंदों के नुपुर
खनका गए बादल
बरस गए बादल !

मंगलवार, 20 जनवरी 2009

जब तुमसे प्रेम हुआ है

तुमको अपना हाल सुनाने
लिख रही हूँ पाती
प्रिय प्राण मेरे
यकीन मानो
अपना ऐसा हाल हुआ है
जबसे मुझको प्रेम हुआ है
जग का अपना दस्तूर पुराना
चरित्र हिन् कहकर देता ताना
बिठाया चाहत पर
पहरे पर पहरा
नवल है प्रीत प्रणय की
कैसे छुपाऊ
ह्रदय खोल कर अपना
कहो किसको बताऊ
अपने भी जैसे

लगते पराये है
जबसे मुझको प्रेम हुआ है
कौन समझाए इन नैनो को
बात तुम्हारी करते है
पलकों पर निशि दिन
स्वप्न तुम्हारे सजाते है
जानती हु स्वप्नातीत
है रूप तुम्हारा
मन प्राण मेरा प्रिय
उस रूप पर मरता है
जबसे मुझको प्रेम हुआ है
तुम्हारी याद में
तुम तक पहुँचाने को

नित गीत नया लिखती हु
भावों की पाटी पर प्रियतम
चित्र तुम्हारा रंगती हु
किंतु छंद न सधता
अक्षर अक्षर बिखरा
थकी तुलिका
बनी आडी तिरछी रेखाएं
अक्स तुम्हारा नही ढला है
जबसे मुझको प्रेम हुआ है !