रविवार, 13 दिसंबर 2009

एक कविता को छोड़कर

हमने जीवन को
कब समझा कब जाना
यूह्नी जीवन को वेर्थ गवांया
किंतु जीते -जीते
एक दिन पता चला
जिसको हमने जीवन समझा
वह जीवन नही
मृत्यु के द्वार पर
खड़ी हुई मनुष्य की
लम्बी कतारे है
कोई अब गया कोई
कल कोई परसों जाएगा
देर सवेर की बात है
खोजने पर भी उनके
नही मिलेंगे निशान
जैसे पानी पर खींची
गई हो लकीरे
बन भी नही पाती
की मिट जाती है
ऐसे ही पल में सब कुछ
मिटा देती है मृत्यु
एक कविता को छोड़कर!

2 टिप्‍पणियां:

umashankar ने कहा…

bahut sundar..
"ek kavita ko chhodkar"
sach..kriti raj jati hai..mrityu ke bad bhi..

Suman ने कहा…

aapka bahut dhyavad.