मंगलवार, 28 जून 2011

कागज की नाव ........( बालकविता )


डगमग डोले डगमग डोले
पानी ऊपर नाव रे
सखी, सहेली आओ देखो
कागज की ये नाव रे !
पानी बरसा तनमन हर्षा
खुशियों का इन्द्रधनुष खिला
तट के उस पार लिये चला
सुंदर सपनों का संसार रे
कागज़ की ये नाव रे !
तूफानों से ना ये घबराये
लहरों पर इतराती जाये
बिना मोल की विहार करायें
देखो कैसी इसकी शान रे
कागज़ की ये नाव रे !
गीत मेरे सुर तुम्हारे
आओ सब मिल-जुलकर गायें
भोला बचपन लौट न आये
नाचो देकर ताल रे !
डगमग डोले डगमग डोले
पानी ऊपर नाव रे !

24 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

mera mann bhi dole re ,,,,

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

कहां गए वो दिन ... वो कागज़ की कश्ती ... वो बारिश का पानी :(

रविकर ने कहा…

बहुत सुन्दर नाव|
बच्चों का ध्यान रख कर लेखन --
प्रभावशाली लेखन ||
बधाई ||

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

Bahut Sunder Baal Rachna...

kshama ने कहा…

Pahli baar aayi aapke blog pe...man prasann ho gaya!

Kunwar Kusumesh ने कहा…

बढ़िया बाल कविता.

नश्तरे एहसास ......... ने कहा…

Bahut sunder rachna!!
Aapki naav ke saath hamara mann bhi balpan mein dolne laga...
aaj to is baarish mein naav bana kar khelne ka mann kar gaya ma'am.

नश्तरे एहसास ......... ने कहा…

aapke blog par aa kar accha laga,
aapko follow bhi kar rahi hoon.
-neha

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुंदर

Sunil Kumar ने कहा…

बालकविता अच्छी लगी , बधाई

कुमार राधारमण ने कहा…

हां,बचपन को सम्पूर्णता में जीना ज़रूरी है ताकि बड़े होने पर वो काग़ज़ की कश्ती,वो बारिश के पानी की कसक बाकी न रहे।

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

लहरों पर इतराती जाये
बिना मोल की विहार करायें
देखो कैसी इसकी शान रे
कागज़ की ये नाव रे !

आन्तरिक भावों के सहज प्रवाहमय सुन्दर रचना....

Unknown ने कहा…

Sundar baal kavita padhvaane ke liye aabhar

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

mausam to aisa hi kuch karne ko kah raha hai:)
umda....maine print out nikal liya....bachcho ke liye:)

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

बहुत सुन्दर...अच्छा लगा.

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

कल 10/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

Akanksha Yadav ने कहा…

बहुत प्यारी बाल-कविता. ..बधाई. 'बाल-दुनिया' के लिए ऐसी कवितायेँ भेज सकती हैं.

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संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत प्यारी बाल-कविता....

संजय भास्‍कर ने कहा…

अस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,

Maheshwari kaneri ने कहा…

सहज प्रवाहमय सुन्दर रचना...

आशा जोगळेकर ने कहा…

बचपन याद दिला गई आपकी कविता. जब कागज की नाव बना बना कर किसी भी गढ्ढे के पानी में चला कर आनंद लेते थे.

Unknown ने कहा…

हॄदय से धन्यवाद,,, बचपन की यादों को पुनः नैनो के समक्ष ला खड़ा किया,, लगा जैसे हम अभी बचपन मे ही है,, ओर अब कागज की नाव बनाकर बहती पानी की धार में छोड़ कर दूर तक उसकी राह के अवरोध को दूर करेंगे,,, कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन,,,

Pankaj ने कहा…

उदास रहता है मोहल्ले में बारिशो का पानी आजकल...
सुना है कागज की नाव बनाने वाले बड़े हो गए...

Unknown ने कहा…

लहरों पर इतराती जाये
बिना मोल की विहार करायें
देखो कैसी इसकी शान रे
कागज़ की ये नाव रे !