एक दिन एक चिड़िया ने
आकाश में मंडराते-मंडराते
दूर चमकते शुभ्र बादल को देखा
और मन ही मन सोचा क़ि,
क्यों न मै उड़कर
उस शुभ्र बादल को छू लूँ
उसने बादल को छूने का
लक्ष्य बनाया
पूरी ताकत से उस दिशा में
उड़ने लगी चिड़िया
किन्तु चमकता शुभ्र बादल
एक जगह स्थिर नहीं
रह पाता
कभी पूरब तो कभी पश्चिम
दिशा में चला जाता
और कभी गोल-गोल
चक्कर लगाता
अथक प्रयासों के बाद
जब चिड़िया बादल तक
पहुँच पायी, अचानक
बादल छंटने लगा
चिड़िया क़ी पहुँच से
ओझल हो गया
यह देख कर चिड़िया ने
कहा .....
मै भी कितनी पागल हूँ
इस क्षणभंगुर बादल
को नहीं, लक्ष्य तो बस
उन पर्वत क़ी गर्वीली
चोटियों को ही,
बनाना चाहिए ...........
19 टिप्पणियां:
वाह... चिड़िया के माध्यम से कितनी सही बात कही
इसी को ही तो मृगतृष्णा कहते हैं ॥
बहुत सुन्दर .. सीख देती हुई अच्छी रचना .. लक्ष्य स्थिर होगा तो मंजिल भी मिलेगी ..
चिड़िया जैसा हाल कइयों का होता है
हां,वहीं ठौर भी है और नई ऊर्जा ग्रहण करने की संभावना भी।
अभिव्यक्ति अच्छी लगी |
बहुत ही सारगर्भित रचना आभार ....
bahut hi sundar prastuti .....pahli bar apke blog pr aaya ....pr sb kuchh sarthk raha ...bahut bahut abhar.
interesting....
लक्ष्य तो बस
उन पर्वत क़ी गर्वीली
चोटियों को ही,
बनाना चाहिए ...........prerna deti hui bahot sunder kavita......
बहोत अच्छे । अच्छा लगा पढकर ।
नया ब्लॉग
http://http://hindidunia.wordpress.com/
Bahut khoob ... jeevan mein laksh kaise nirdhaarit karo ... iski soojh deti rachna ...
बहुत सार्थक प्रस्तुति...हम क्षणभंगुर उद्देश्यों के पीछे भागते हुए जीवन का असली मकसद भूल जाते हैं..
लक्ष्य तो ठोस ही होना चाहिए. सुंदर कविता.
बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक संदेश देती हुई रचना।
निःसंदेह सराहनीय....
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क्या यही गणतंत्र है
संगीता जी,
चिड़िया की सीख से एक बहुत अच्छा संदेश दिया है कि लक्ष्य क्या होना चाहिए?
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
सुन्दर संदेश देती सुन्दर रचना । आभार ।
बसंत पंचमी और माँ सरस्वती पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ । मेरे ब्लॉग "मेरी कविता" पर माँ शारदे को समर्पित 100वीं पोस्ट जरुर देखें ।
"हे ज्ञान की देवी शारदे"
लक्ष्य को पाने की प्रेरणा देती सुंदर कविता।
bahut hi sundar ....gahan abhivykti ,....badhai suman ji
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