चाहता है मन
फिके न हो यह
जीवन के इन्द्रधनुषी
रंग कभी भी,
देते रहे सदा
चटक,गहरे पन
का अहसास
किन्तु कहाँ ऐसा
संभव होता है
प्रकृति से संघर्ष
मन का व्यर्थ हो
जाता है !
जो रंग कल थे
आज कहाँ ?
आज के कल
कहाँ ठहरेंगे
हर बसंत के बाद
पतझर आता है
कल रो-रो कर
कहा किसी ने
दिल न लगाना
किसीसे भी
प्रित के रंग भी
अक्सर समय के
साथ फिके हो
साथ फिके हो
जाते है !
7 टिप्पणियां:
जीवन के इन्द्रधनुषी रंग....समय के साथ ही बदलते रहते है!...सुन्दर रचना!
यथार्थ को बताती रचना......
अति प्रभावशाली रचना ...
सुंदर ,सशक्त भाव
यह वह रंग है जो समय के साथ गहराता जाता है। छूटता कभी नहीं।
समय होत बलवान...अति सुन्दर..
रंग कब एकसे रहे हैं,...एक कैनवस के चित्र भी समय के साथ धूमिल हो जाते हैं ...फिर यह तो जीवन है ! सुन्दर प्रभावपूर्ण रचना
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