मृत्यु
जन्म के साथ ही
जन्म लेती है
बढती है हर पल
प्रौढ़ होती है !
मृत्यु
आती है कहीं भी
कभी भी हर घडी
हर मोड़ पर खड़ी !
मृत्यु
आती है कभी
रात के सन्नाटे में
चुपचाप दबेपांव
पंजों के बल !
मृत्यु
आती है कभी
दोपहर के उजाले में
ललकारती हुई
होटों पर कुटिल
मुस्कान लिये !
मृत्यु
जीवन का सच
रामनाम सत्य
इस सत्य को जब तक
स्वीकार नहीं करेगा
नहीं करेगा समर्पण
जीवन की धार में
तब तक लड़ता रहा है
लड़ता रहेगा वंशज
भगीरथ का काल से
नहीं मानेगा हार .....
12 टिप्पणियां:
सत्य को उद्घाटित करती पंक्तियाँ
मृत्यु....सच है जीवन का...
फिर स्वीकार्य क्यों नहीं..??
जीवन की लालसा इतनी अधिक???
गहन भाव..
सादर
अनु
रिश्ते नाते सत्य यह, मिथ्या जगत विचार ।
वो ही शाश्वत सत्य है, वो ही विश्वाधार ।
वो ही विश्वाधार, उसी के हाथों डोरी ।
कठपुतली सा नाच, गर्व कर देह निगोरी ।
हो जाती है मगन, भूल कर अटल मृत्यु को ।
क्षिति जल पावक गगन, वायु के असल कृत्य को ।।
सार्थकता लिये सटीक शब्द रचना ...
आभार
जीवंत भावनाएं.सुन्दर चित्रांकन,बहुत खूब
बेह्तरीन अभिव्यक्ति
नहीं,जीवन का सच मृत्यु तो नहीं है। वह तो मृत्यु का सच है।
जीवन का सच रामनाम ज़रूर है। वह भी तब,जब पता हो कि "राम" दशरथ-पुत्र नहीं और "नाम" वह जो केवल संबोधन की सहूलियत के लिए है।
वाह बहुत सुन्दर व्याख्या की है
आभार ...
वाह सुमन जी मृत्यु के कितने रूप दिखाये हैं पर भगीरथ का वंशज इससे लडता ही रहेगा यह भी तो सच है ।
मृत्यु
जन्म के साथ ही
जन्म लेती है
बढती है हर पल
प्रौढ़ होती है !
बिलकुल सही ....!!
जन्म मृत्यु .... साथ साथ चलते हैं फिर भी - न दुःख स्वीकार्य है,न मृत्यु
शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन
मृत्यु
जीवन का सच
रामनाम सत्य
इस सत्य को जब तक
स्वीकार नहीं करेगा
नहीं करेगा समर्पण
जीवन की धार में
...शास्वत सत्य को दर्शाती बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति..
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