मन की भी अजीब स्थिति होती है, मनोभावों को सशक्तता से अभिव्यक्त करती रचना.रामराम.
कभी कभी मन को ढीला भी छोड़ना चाहिए । तभी तो कसा जाएगा ...
सधे सुरीले दिनों से इतर कुछ दिन ऐसे भी होते हैं....देखना बीत ही जायेंगे.... सादरअनु
बहुत ही सुन्दर एहसास,आभार.
मन के भावों को जड़ें देनेवाली सशक्त रचना के लिए बधाई
कुछ अधिक ढीले ढाले कुछ अधिक कसेकैसा असमंजस
छंद सधते नहीं, ध्यान बंटता बहुतआज अक्षर बिखरते चले जा रहे !कुछ हैं ढीले बहुत,कुछ बहुत कस गए,मन की वीणा के तार अब सँभलते नहीं !
बहुत बढिया
अति सुन्दर मनोभावोँ की प्रस्तुति । बधाई ।
उदास और गहन अभिव्यक्ति ....!!
एक टिप्पणी भेजें
11 टिप्पणियां:
मन की भी अजीब स्थिति होती है, मनोभावों को सशक्तता से अभिव्यक्त करती रचना.
रामराम.
कभी कभी मन को ढीला भी छोड़ना चाहिए । तभी तो कसा जाएगा ...
सधे सुरीले दिनों से इतर कुछ दिन ऐसे भी होते हैं....
देखना बीत ही जायेंगे....
सादर
अनु
बहुत ही सुन्दर एहसास,आभार.
मन के भावों को जड़ें देनेवाली सशक्त रचना के लिए बधाई
कुछ अधिक ढीले ढाले कुछ अधिक कसे
कैसा असमंजस
कुछ अधिक ढीले ढाले कुछ अधिक कसे
कैसा असमंजस
छंद सधते नहीं, ध्यान बंटता बहुत
आज अक्षर बिखरते चले जा रहे !
कुछ हैं ढीले बहुत,कुछ बहुत कस गए,
मन की वीणा के तार अब सँभलते नहीं !
बहुत बढिया
अति सुन्दर मनोभावोँ की प्रस्तुति । बधाई ।
उदास और गहन अभिव्यक्ति ....!!
एक टिप्पणी भेजें