रविवार, 21 जुलाई 2013

तुम्हारी दी हुई रौशनी …


सुबह से शाम
चलने को 
चलती हूँ 
दुनिया की 
भीड़ में 
दुनिया के 
साथ … 
आहिस्ता -आहिस्ता 
तम की ,
अँधेरी सुरंग में 
तुम्हारी 
दी हुई रौशनी 
ओढ़ कर 
उस रौशनी के 
साथ …। 

8 टिप्‍पणियां:

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

संसार में रहते हुये इसी मार्ग से उसको पाया जा सकता है, बहुत ही गहन और सुक्ष्म आत्म चिंतन.

रामराम.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

उस रौशनी में ये अंधेरे की सुरंग आसानी से कट जाएगी ... बहुत लाजवाब ...

Rajesh Kumari ने कहा…

आपकी इस शानदार प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार २३/७ /१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है सस्नेह ।

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति!

राजीव रंजन गिरि ने कहा…

सूक्ष्म और सुन्दर ..बधाई
यहाँ भी पधारें
http://www.rajeevranjangiri.blogspot.in/

Asha Joglekar ने कहा…

उसीकी रौशनी से रोशन है हमारा संसार ।
सुंदर प्रस्तुति ।

Rachana ने कहा…

तुम्हारी दी हुई रौशनी khoob kaha aapne
badhai
rachana

Satish Saxena ने कहा…

सुंदर ..