गुरुवार, 22 अगस्त 2013

सूफियाना इश्क ….

प्रेम,
व्यक्ति को बदल कर 
भिखारी से सम्राट जैसा 
बना देता है लेकिन 
कई बार अपेक्षायें 
ऐसा होने नहीं देती 
समय के साथ-साथ 
हर चीज बदल जाती है 
प्रेम भी,
जब ह्रदय प्रेम से 
लबालब भर जाता है 
तब प्रेम को ग्रहण 
करने वाला पात्र भी 
छोटा पडने लगता है 
शायद इसी कारण से 
इश्क भी सूफियाना 
हो जाता है !
क्या प्रेम एक 
रासायनिक प्रक्रिया 
का नाम है  … ??

7 टिप्‍पणियां:

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

शायद पात्र की क्षमता तक, इसके बाद तो सूफ़ियाई होना उसकी परिणिति है. बहुत ही गहन रचना.

रामराम.

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

प्रेम एक रासायनिक प्रक्रिया है....
"तुम" और "मैं" के बीच की क्रियाएँ...जहाँ विश्वास उत्प्रेरक(catalyst) का काम करता है :-)

सादर
अनु

Ramakant Singh ने कहा…

समय के साथ प्रेम बदल जाये ये सम्भव?

Ramakant Singh ने कहा…

समय के साथ प्रेम बदल जाये ये सम्भव?

Satish Saxena ने कहा…

आज अकेला भौंरा देखा ,
धीमे धीमे, गाते देखा !
काले चेहरे और जोश पर
फूलों को, मुस्काते देखा !
खाते पीते केवल तेरी,याद दिलाएं ,ये मधु गीत !
झील भरी आँखों में कबसे,डूब चुके हैं ,मेरे गीत !

दिगम्बर नासवा ने कहा…

प्रेम की अंतिम सीड़ी सुफ्याने की ओर ही ले जाती है ... जो गहरा प्रेम है बस ...

Asha Joglekar ने कहा…

रासायनिक प्रक्रिया से ज्यादा कुछ है शायद । तभी तो सूफियाना हो जाता है ।